2011 में लिखी एक कविता "आवाज़" : रूपरेखा वर्मा

Update: 2021-09-14 12:37 GMT

सूखे पत्ते का ज़मीन पर गिरना

हवा का शाख़ों से टकराना

चिटख़ना कली का

फड़कना चिड़िया के पंखों का

पानी का बजरीले किनारों को छू कर लौटना

अंतरिक्ष के इस कोने से उस कोने तक

ऐसी तमाम आवाज़ें --

सुनो इनको

ये कहती हैं

ज़िंदगी की अनगिनत कहानियाँ

और समझो फ़र्क़

पीपल और नीम के पत्तों के गिरने के बीच

दरीचों और दरवाजों से हवा के टकराने के बीच

गुलाब और नागफनी की कलियों के बीच

गौरैया और चील के पंखों की फड़कन के बीच

और ऐसी किन्हीं भी दो आवाज़ों के बीच।

कि, हर आवाज़ की

तारीख़े दास्तान अलग होती है

और ये सभी दास्तान बाहर ही नहीं,

हमारे अन्दर भी होती हैं !

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