एक नदी गुज़रती है
मेरे मन के बिल्कुल बीच से ।
इस पार सब है तुम नहीं
उस पार तुम हो सब नहीं ।
वो नदी जो है मेरे मन की
पिछले दिनों से उफान पे है
बाढ़ आयी है,
और एक किनारा डूबेगा ।
मैं चाहता हूँ
कि जिधर तुम खड़े हो,
वो रह जाये,
मेरे मन का बाकी हर कोना बह जाये ।।
~फफूंद किताब से