एक समय था जब गाँवो में लोग सर्दियों के मौसम में अलाव (कौड़ा) में बैठकर किस्से-कहानियों का दौर चला करता था, पहले इतनी आधुनिकता नही थी ,
पहले मोबाइल, टीवी नहीं था, तब इन अलावों (कौड़ा) के आसपास खूब भीड़ रहती थी, अब तो सब रजाई में बैठकर फोन चलाते रहते हैं, किसको फुर्सत है कहानी सुनने की।आज से पांच छह साल पहले जबतक मोबाईल जैसे उपकरणों की भरमार नहीं थी तब ग्रामीण क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में ये अलाव (कौड़ा) ही मनोरंजन का माध्यम होते थे। इन अलाव पर ठंड से बचने के साथ-साथ कभी किस्से-कहानियां तो कभी लोक संगीत और आल्हा होते। लड़ाई-झगड़े भी यहीं निपटते और एक दूसरे की मदद भी होती। ग्रामीण फसलों की चर्चा के साथ भुने आलू और शकरकंद का लुत्फ भी उठाते थे। "छह सात साल से अलाव पर किस्से कहने का सिलसिला न के बराबर बचा है। अलाव सिर्फ ठंड से नहीं बचाता था, ये मनोरंजन का भी एक माध्यम था। यहां पर पूरे मोहल्ले के गिले शिकवे मिट जाते थे । अब तो यह नजारा न के बराबर है ,
आपको बता दें हमारे देश के गांवो में अलाव(कौड़ा) वो ठिकाना होता है जिसे लोग सर्दी के मौसम में जलाते हैं। सीमित संसाधनों के बीच जीवन गुजार रहे लोगों के लिए ठंड से बचने का अलाव ही एक जरिया होता है। पर पिछले कुछ सालों में बढ़ते आधुनिकीकरण की वजह से नुक्कड़ पर जलने वाले अलाव अब दरवाजों तक सीमित हो गये हैं। अगर किसी के घर में फसल आने से पहले अनाज खत्म हो गया तो उसे खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती, अलाव पर ही बातचीत में कोई न कोई उनकी मदद के लिए तैयार हो जाता था। अब गांवों में भी पहले जैसा भाईचारा नहीं बचा है।
'ये भारत के अन्नदाता ये कैसी बेहाली रे, सारा जग का पेट भरे तू तेरी झोली खाली रे'...
अलाव पर बैठे दादा जी ने खेती-किसानी से जुड़े ऐसे कई कई बाते बताई, गाँवो में अलाव का महत्व भी बताया कि सेहत के रखरखाव का पारंपरिक त्यौहार है मकर संक्रांति अभी भी ग्रामीण इलाको में लोग अलाव तापते हैं लेकिन पहले जैसी भीड़ नहीं रहती अपने देश में अलाव की धार्मिक मान्यताएं भी हैं। जैसे ओडिशा में अलाव जलाकर अग्नि पूर्णिमा त्योहार मनाया जाता है जो माघ पूर्णिमा के दौरान फरवरी महीने के बीच में पड़ती है। मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले सिख समुदाय के लोग लोहड़ी मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे प्रदेश में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इसमें भी अलाव ही जलाये जाते हैं। लोग सूखी लकड़ियों को इकट्ठा करके पिरामिड तैयार करते हैं फिर इसकी पूजा होती है। इस अलाव में तिल के दाने के साथ मिठाई, गन्ना, चावल और फल भी डाले जाते हैं। इसके बाद लोग ढोल की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा करते हैं।