मनमोहनसिंह सरीखे ईमानदार के चेहरे पर कालिख पोतकर अन्ना हज़ारे कंपनी ने मुख्यतः 2G स्पेक्ट्रम के नाम पर मोदी और केजरीवाल को सत्ता सौंपी
अन्ना हज़ारे कंपनी ने मुख्यतः 2G स्पेक्ट्रम के आवंटन में देश को ढाई लाख करोड़ के नुक़सान का मुद्दा झूठ साबित हुआ लेकिन इन्हें दो फ़ायदे हुये केंद्र में कॉरपोरेट की मदद से मोदी और दिल्ली राज्य केजरीवाल के हाथ में आ गया
रमाशंकर सिंह
अन्ना हज़ारे कंपनी ने मुख्यतः 2G स्पेक्ट्रम के आवंटन में देश को ढाई लाख करोड़ के नुक़सान का मुद्दा उठाया और भ्रष्टाचार निवारण के लिये लोकपाल का भी। इस कंपनी में कई मंतव्यों के लोग थे। कुछ वापिस बीजेपी में चले गये जैसे किरन बेदी और बी के सिंह आदि , कुछेक को केजरीवाल ने इन सबकी सहमति से निकाल दिया जैसे अग्निवेश और महाराष्ट्र के कुछ नामी एनजीओ छाप लोग! बचे प्रशांत भूषण योगेन्द्र यादव जैसे जो सबसे बाद में बेइज्जत कर निकाल फैंके गये ! कई अन्य भी थे जो मंच पर पीछे खड़े रह कर स्वयं को धन्य समझते रहे ! कुछ टीवी स्टूडियो में बैठकर यथार्थ से कटे रहे।
इस पूरी कंपनी ने यह अहसास दिलाया था जैसे कि देश में १९४२ के बाद यह पहली क्रांति है ! कॉरपोरेट बिकाऊ मीडिया ने भी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया ! भीड़ पहुँचाने , धरने पर भोजन पानी बिसलेरी देने और गली गली झंडा लहराने का ज़िम्मा संघ के कुछ धनाढ्यों ने उठाया। तब किसी को संघ नहीं दिखा , दिखाने पर यह कहा कि इनके कार्यकर्ता प्रेरित होकर निजी हैसियत में आ रहे हैं और यही क्रांति का द्योतक है।
2G घोटाला कहीं था ही नहीं , अदालत में साबित हुआ और बाद में 3G 4G 5G तक की नीलामी से यही सिद्ध हुआ कि दो लाख ढाई लाख करोड़ की बातें मनगढ़ंत थी। फिर अन्ना हज़ारे के मंचों से कई बार यह कहा गया कि स्विस बैंकों में अपार कालाधन हैं और सबने फिर से मनगढ़ंत ऐसी संख्या मात्रा बताई जो जनमन को उद्वेलित कर दे । एक बार तो 250 लाख करोड़ तक कह दिया कि इतनी है कि आयकर लगाना ही नहीं पड़ेगा और कालाधन आते ही तत्काल भारत अमेरिका के समकक्ष हो जायेगा। कोई अध्ययन शोध या प्रामाणिक बात नहीं बस बड़ी से बड़ी गप्प जो जब हांक दें और यह सब उसी हज़ारे मंच से हुआ जिसके उत्तराधिकारी केजरीवाल घोषित हुये थे। नोटबंदी से बहुत कुछ प्रमाणित हुआ जो कि इस सरकार की विराट असफलता का स्मारक है
टीवी पर एक साक्षात्कार में योगेन्द्र यादव को एक दिन यह कहते मैंने सुना कि मैं सबसे प्रसन्न तब होऊँगा जब केजरीवाल प्रधानमंत्री बनेंगें। प्रशांत भूषण के पाँव ज़मीन पर नहीं थे और गुरु वशिष्ठ की मुद्रा व हैसियत ओढ़े हुये थे।
एक एक मुद्दा झूठ साबित हुआ लेकिन इन्हें दो फ़ायदे हुये केंद्र में कॉरपोरेट की मदद से मोदी और दिल्ली राज्य केजरीवाल के हाथ में आ गया ! डा० मनमोहनसिंह सरीखे ईमानदार आदमी के चेहरे पर कालिख लगायी और अतिकुशल प्रशासक दिल्ली का रूप बदलने वाली शीला दीक्षित की बदनामी हुई और अंतत राजनीतिक अवसान हुआ। यह पूरी कंपनी आज भी इन सब बातों के लिये उसी जंतर मंतर पर माफ़ी माँगने को तैयार नहीं होगी। प्रायश्चित स्वरूप अनशन भी नही।
वायदे के अनुसार कि सरकार में आते ही पहले दिन ही लोकपाल क़ानून लागू करेंगें , कहीं नहीं हुआ । पंजाब में भी नहीं ! अब लोकपाल सीवीसी लोकायुक्त भी प्रतिबद्ध अफ़सर रखे जा रहे हैं जिनका मुख्य दायित्व ही है कि भ्रष्टाचारी का कुछ भी बाल बाँका नहीं होने पाये !
" कांग्रेस मर क्यों नहीं जाती " जैसे ऐतिहासिक वाक्य योगेंद्र यादव ने तब भी कहे जब केजरीवाल कंपनी से धकियाये जा चुके थे कि किसी राज्य में जब कांग्रेस चुनाव हार गयी।
किसानों का अभूतपूर्व ऐतिहासिक आंदोलन हुआ जिसका सेहरा लूटने और मीडिया में अपना मिठबोलापन दिखाने फिर वही लोग कूद पड़े और जब उन किसानों से सरकार ने धोखा कर दिया तो बजाये उसे पुनर्जीवित करने के फ़ौरन वहॉं से इस्तीफ़ा देकर राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हो गये। राहुल तो नौसिखिया हैं ही कि जिनके खुद के बूते देश में एक हज़ार आदमी इकट्ठे नहीं हो सकते उन्हें लाखों लोगों का एक्सपोज़र दे रहे हैं। वैसे वहॉं ठिकाना उन दोनों का भी नहीं है जो कथित रूप से इस यात्रा के सलाहकार बताये जा रहे हैं। कॉरपोरेट लूट के इतने मोहरे अलग अलग दलों में स्थापित हो चुके हैं जिनका ऊपरी रूप कालनेमि जैसा है।
यह भी बहुत समय नहीं चलेगा ! जैसे ही हरियाणा चुनाव में कांग्रेस अकेले चलने का घोषित करेगी वैसे ही कांग्रेस के टिकिट पर भी यदि दो चार नहीं धँस पाये तो कांग्रेस का विरोध तैयार रहेगा या फिर मुख्यधारा के इसी दल में किसी पद को पाकर समुद्र में विलीन हो जायेंगें लेकिन लैटरहैड ज़िंदा रहेगा। न जाने कब काम आ जाये ! इंडिया नाम का औपनिवेशिक शब्द बार बार मोदी तो बरतते ही हैं , स्वराज के साथ भी इंडिया जोड़कर एक प्रहसनकारी शाब्दिक युग्म बनाया गया है ! समाजवाद शब्द ले इसलिये नफ़रत है कि लालू मुलायम के साथ जुड़ गया है पर अंग्रेज़ी इंडिया से क्यों हो ?
भारतीय राजनीति में फ़र्ज़ी लोगों द्वारा फ़र्ज़ी मुद्दों को उठाकर एक फ़र्ज़ी वातावरण बना कर येन केन प्रकारेण सत्ता तक पहुँचना और फिर अंधाधुंध कमाई कर या जनता को बार बार भरमा कर पुन: सत्ता में आना ही एकमात्र लक्ष्य हो चुका है।
कुछ बेवकूफ होते हैं कुछ बन जाते हैं पर अधिकांश बनाये जाते हैं। इन सबमें सिर्फ़ संघ ही है जो सुविचारित कदम उठाता है कि हर परिस्थिति में उसे लाभ ही पहुँचे ! वैसा संगठन व कार्यपद्धति किसी अन्य की नहीं। कांग्रेस अब एक छोटी भीड़ मात्र है जिसे जो चाहे सो वैसा हांक ले। जब जिसकी मर्ज़ी व सुविधा हो वैसे खिसक ले।
जब मूल विचार गौण हो जाये , पुरुखे और उनकी बलिदान भुला दिया जायें , संगठन मार दिये जायें, एक परिवार हावी हो जाये तो हश्र तो यही होना था। यदि चार पाँच महीनों में सब ज़िलों में सुव्यवस्थित ढंग से कॉडर का प्रशिक्षण ही होता तो निश्चित ही बड़ा नतीजा निकलता बजाय यात्रा के वक्ती व निजी प्रचार के !
जिन लोगों को आगत और वर्तमान राजनीति में कोई निश्चित ठौर ठिकाना नहीं , समुचित विश्लेषण नही , मुद्दों पर ठहराव नही, सगुण पर विचार नहीं इनका लेक्चर सुन वक्त क्यों बर्बाद किया जाये ।
देश चेहरों से नहीं नीतियों से चलेगा ! नीतियाँ सर्वकालिक सिद्धांतों से बनेगी। देश जुड़ेगा भी नीतियों से , आर्थिक सामाजिक से सिर्फ़ राजनीतिक से ही नहीं। नीतियों पर कांग्रेस अपना स्टैंड साफ़ क्यों नहीं करती ? क्यों भाजपा और कांग्रेस एक जैसी आर्थिक नीतियों पर टिकी है ?
यह लेख रमाशंकर सिंह ने अपनी फ़ेसबुक पर लिखा है।