क्या सचमुच मुसलमान बड़ा अत्याचार झेल रहे हैं और क्या सचमुच उन्होंने भारत की सार्वभौमिकता के विरुद्ध बड़े अपराध किये हैं?
सिख इसे झेल चुके है, उबर चुके हैं। किसी राजनैतिक लड़ाई के बूते नही, किसी पार्टी को सत्ता से गिराकर नहीं, एक कॉन्शस और कंटीन्यू एफर्ट से।
मनीष सिंह
कोई शक नही कि कुंठित, प्रतिभाहीन लोगो ने सत्ता बहाल रखने के लिए साम्प्रदायिक बाइनरी का कौशल निखार लिया है। बहुसंख्यकों में जुगुप्सा, क्रोध, नफरत बरकरार रखने के लिए मुस्लिम समाज को मॉन्सटर के रूप में पेंट किया जा रहा है। 1989 के बाद राम का घर बनाने का नारा 2020 में रहमान का घर जलाने तक पहुंच गया है।
मगर हिंसा, और एक समाज को देश के दुश्मन के रूप में पेंट करना पहली बार नहीं हो रहा। सिख इसे झेल चुके है, उबर चुके हैं। किसी राजनैतिक लड़ाई के बूते नही, किसी पार्टी को सत्ता से गिराकर नहीं, एक कॉन्शस और कंटीन्यू एफर्ट से।
1980 के बाद की तस्वीरें गूगल कीजिये। क्या नही मिलेगा आपको..! एक राज्य में अकल्पनीय आतंकवाद, बसों से उतारकर हत्यायें, एयरइंडिया फ्लाइट को उड़ा देना- 329 मौतें, एक प्रधानमंत्री की हत्या, एक अलग देश की मांग, पाकिस्तान का साफ समर्थन, विदेशों में जहरीला प्रचार, धार्मिक स्थल में घूमते हथियारबंद लोग, हथियारों का जखीरा, वहां भारत की सेना का हमला, एक नही दो बार .. ! ध्वंस हो चुका धार्मिक केंद्र, सैनिकों की बिखरी हुई लाशें..
तब के मध्यप्रदेश के दूरस्थ वनमण्डल जशपुर में मेरे पिता पदस्थ थे। मां किस्सा सुनाती हैं, कि सिख आईएफएस जोगिंदर सिंह डीएफओ हुआ करते थे। नाम याद है उन्हें.. 1984 के नवम्बर में, उस अलसाये से आदिवासी टाउन में भी, भीड़ एक सीनियर अफसर को मारने उमड़ पड़ी थी। जो हुआ, कैसे वे बचाये गए.. छोड़िये। बस ये सोचिये की नफरत किंतनी दूर तक चली गयी थी, और किंतनी गहरे तक गयी थी।
वो एक दौर था, एक आज का दौर है। सिख याने भरोसा, सिख याने सेवा, सिख याने ईमानदारी, सिख याने जनरल विक्रम सिंह, सिख याने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। सिख याने वो इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह, जो भगवा राज्य में अपनी सर्विस और जान को दांव पर लगा जाए और एक अकेले पड़े मुसलमान को सीने में छुपाकर मॉब लिंचिंग से बचा ले जाए। सिख वो जो हर आपदा में सबसे पहले दौड़ा चला आये। सिख वो जो मस्ती में पूरे मोहल्ले को झुमा दे। सिख जो हंसे तो आपका घर गुंजा दे।
सिखों की वो पुरानी तस्वीरे पूरे समाज की तस्वीर नही थी। वो चंद मुट्ठी भर उग्रवादियों ने गढ़ दी थी। समाज से निकले लाखों गगनदीपों ने उस तस्वीर को फाड़कर फेंक दिया है। तब एक पूरी राजनैतिक पार्टी, जिसके पास रोड रोलर बहुमत था, देश भर में सरकारें थी।जिसका नेटवर्क सिखों के प्रति आक्रोश को बढाने और फैलाने में कोई कसर नही छोड़ रखा था। वो पार्टी, जो आज मुकाबिल ताकत से ज्यादा ताकतवर थी, एलीट और स्मार्ट थी। उस ताकत ने भी आखिर सर झुकाया, माफी मांगी, और समाज को प्रधानमंत्री का पद देने से गुरेज न किया। देश ने भी सम्मान किया। दो दो बार सर आंखों पर बिठाया।
चंद मुस्लिम उग्रपंथियों ने अब तक उस लेवल का तो कुछ भी नही किया। पूरे समाज ने उस लेवल का कुछ भी नही झेला। यहां तो अधिकांश जुबानी थ्रेट्स हैं, जाहील नेताओं के बयान हैं, बुड़बक देहाती नाजी हैं, फेसबुक पोस्ट और ट्वीट हैं, कुछ फर्जी गिरफ्तारी है। पैनिक क्यों होते हैं। उनका वो दौर निकल गया, तो आपका क्यो नही निकलेगा।
मगर इसके लिए आपके बीच गगनदीपों की जरूरत है। वैसा दिखने की जरूरत है, वैसा होने की जरूरत है। प्रतिक्रिया और बरियारी नही, अधिकार और चीत्कार नहीं.. ये काउंटर प्रोडक्टिव है। शांति, मुस्कान की जरूरत है।
सिर्फ मुस्लिम समाज को नही, पूरे भारत को आपके प्रो एक्टिव रोल की जरूरत है। इसलिए कि आग रहमान के घर से बढ़कर पालघर तक आ गयी है। साधुओं के राज में साधुओं तक आ गयी है। ये ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। भारत की सरज़मीं पर आपकी हकदारी से जन्मी जिम्मेदारी है।
एक बार गगनदीप की आंखे देखिए। उसका अंदाज, धैर्य और मजबूती देखिए। क्या वो जिगर और धैर्य मुस्लिम युवाओं में है ????
पैदा कीजिये। दीवार जहां से टूटेगी, रास्ता वहीं से निकलेगा।