गुजरात का भूकम्प, जिसने गणतंत्र की जड़े हिला दी, उससे जन्मे सीएम नरेंद्र मोदी पीएम बनने तक किस्मत के धनी है!
CM Narendra Modi, born from the earthquake of Gujarat, which shook the roots of the republic, is rich in luck till becoming PM
गुजरात का भूकम्प, जिसने गणतंत्र की जड़े हिला दी। जी हां, वो 2001 की 26 जनवरी याने "गणतंत्र दिवस" था। देश में सम्विधान लागू होने की 51 वी वर्षगांठ, और 51 तो शुभांक होता है।
पर शुभ नही हुआ। सुबह पौने नौ बजे गुजरात के पश्चिमी हिस्से में भूकम्प की खबर आई। कोई बीस हजार लोग मरे, डेढ़ लाख घायल हुए।
पर यह तो गिनती की शुरुआत भर थी।
1990 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे चिमनभाई पटेल। पटेल साहब पलटी के उस्ताद थे। कांग्रेसी चिमनभाई ने इंदिरा के दौर में , इंदिरा की मर्जी के बगैर चीफ मिनिस्टरशिप कब्जा करने का कारनामा किया था। उन्हें पनिश करने के चक्कर मे इंदिरा ने गुजरात का गेंहूँ का कोटा घटाया, वो गेहूं की कीमत ->होस्टल कॉस्ट वृद्धि -> छात्र आंदोलन-> जेपी-> इमरजेंसी और सत्ता से बेदखली तक गया। वही चिमन भाई, राजीव के उत्तरार्ध में वीपी सिंह के साथ हो लिए।
गुजरात मे वीपी के जनता दल की सरकार बनी। चिमन सीएम हुए, और चूंकि ये सरकार भाजपा के समर्थन से बनी थी, और उसमे केशुभाई पटेल डिप्टी सीएम हुए। केशुभाई, जनसंघ के जमाने का मिट्टी पकड़ कार्यकर्ता। संघी बियाबान के निराश दौर में गुजरात को संघ और भाजपा के ताने बाने में बांधने वाला सूत्र। केशु की डिप्टी सीएमशिप देर तक नही चली, क्योकि चिमन ने फिर पलटी मार ली। भाजपा छोड़, नरसिंहराव की कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में बने रहे। फिर अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलीन कर दिया।
कांग्रेस 1995 में हार गयी।
भाजपा पहली बार जीत गयी। केशुभाई मुख्यमंत्री हुए। कोई चालीस सालों की मेहनत का फल साल भर भी न खा पाए, की कांड हो गया। राज्य भाजपा के दूसरे गुट याने शंकरसिंह वाघेला ने बगावत कर दी। रातोरात पचास विधायक खजुराहो के रिजॉर्ट में पहुंच गए।
आजकल जो ये रिजॉर्ट पॉलिटिक्स आप देखते है, उसकी ईजाद भारत मे पहली बार शंकरसिंह वाघेला ने, खजुराहो के चंदेला रिजॉर्ट से की थी। तो केंद्रीय नेतृत्व ने वाघेला का मान मनव्वल किया। वाघेला ने केशुभाई का इस्तीफा मांग लिया। केशुभाई पद छोड़ दिये पर वाघेला को भी न बैठने दिया। अब सुरेश मेहता सीएम बने, पर कुछ भी कंट्रोल में नही था। पांच साल में वाघेला सहित चार सीएम हुए और एक बार राष्ट्रपति शाशन लगा।
2000 में चुनाव सामने था। बीजेपी स्टेट यूनिट खेमो में बंटी थी। केशुभाई ही लोकप्रिय थे, भाजपा के तारणहार थे। तो जो उन्होंने बोला, वो पार्टी ने चुपचाप मान लिया। केशुभाई के सारे विरोधी टाइट किये गए। इनमे एक आडवाणी गुट का आदमी भी था। केशुभाई को मालूम था कि ये बन्दा उनके खिलाफ चले तमाम षड्यंत्रों का केंद्र रहा है। उसे राज्यबदर करा दिया, मने दिखना नही चाहिये प्रदेश में। पर आडवाणी जी का प्रिय था वो बन्दा, तो अगले दूसरे राज्यों में छिटपुट काम देकर शंट कर किया गया।
गुजरात मे केशुभाई के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ी।वो जीते, और बम्फाड़ जीते, मुख्यमंत्री बने। मगर किस्मत भी कोई चीज होती है। नौ माह में भूकम्प आ गया। अफरातफरी का माहौल था। राहत कार्य मे काफी मिसमैनेजमेंट रहा। फिर एक उपचुनाव में हार मिली। मौका देख केशुभाई विरोधी फिर एक हो गए।तूफान उठा, केशुभाई बीमार हैं, प्रशासन सम्भल नही रहा आदि आदि इत्यादि। केशुभाई घिर गए, सीएम बदलना तय कर लिया गया।
गुजरात को हिंदुत्व की लेबोरेटरी बनाना था। देश का अकेला राज्य जहां बहुमत था। इसे हाथ से निकलने नही देना था। आडवाणी को अपने भरोसे का आदमी चाहिए था, संघ को अपने भरोसे का। ऐसा आदमी जो गुजरात से परिचित हो, केशुभाई विरोधियों को एक पाले में रखे। ऐसा तो एक ही आदमी था, पर इस वक्त वो अमेरिका में फोटुक खिंचवा रहा था।
खबर भेजी गई- तड़ीपारी खत्म, लौटआओ। तुम्हे सीएम बनना है।
जाने क्या क्वालिफिकेशन थी, जाने कौन सी योग्यता थी, पता नही कौन सा प्रशासनिक अनुभव था। एक व्यक्ति जो कभी पार्षद या विधायक नही रहा था, जिसे गुजरात की जनता ने नही चुना था, पकड़कर सीधे केशुभाई की कमाई हुई कुर्सी पर बिठा दिया गया।
तो भुज के भूकम्प से जन्मे सीएम को अपनी योग्यता साबित करनी थी। शपथ के साल भर के भीतर अहमदाबाद की सड़कों पर नये मुख्यमंत्री की योग्यता का भूकम्प आया। कितने मरे, कितने घायल हुए, वह गिनना हमने छोड़ दिया है। क्योंकि अब योग्यता का वो भूकम्प अब भी जारी है, पूरा देश झेल रहा है। जनता झेल रही है,जनतंत्र झेल रहा है। इतिहास भी इस योग्यता को जीडीपी के पैमाने पर नही, रिक्टर स्केल पर गिनेगा।
यही लिखेगा..
"गुजरात का वो भूकम्प, जिसने गणतंत्र की जड़े हिला दीं"
मनीष सिंह