अंधा धृतराष्ट्र जानने को जिज्ञासु तो है, लेकिन संजय से अपने मन की बात सुनने को व्याकुल जरुर है

Update: 2020-06-12 16:47 GMT

सुनील कुमार मिश्र 

अंधा धृतराष्ट्र जानने को जिज्ञासु है कि कुरुक्षेत्र मे युद्ध स्थल पर क्या घट रहा है। ध्यान से देखे तो पृथ्वी पर सारे युद्धों और उपद्रवों के पीछे अंधे आदमी और धर्म को ही खड़ा पायेंगे। एक और मजेदार बात है👉पृथ्वी पर सारे युद्धों को धर्म की रक्षा के लिये आखिरी उपाय बताया गया। इस पृथ्वी को रणक्षेत्र बनाने मे तथाकथित धर्म और अंधो का बड़ा योगदान है। युद्ध मे जब धर्म की अफीम चटा जी जाती है, तो फिर तो रणक्षेत्र मे धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाली अंधों की बड़ी भीड़ इकट्ठी हो जाती है।

संजय के पास आँख है, लेकिन वो सेवक है उसका काम है👉दूर जो घट रहा है, उसको शब्दों से अपने अंधे राजा को बयान करना👉अंधे धृतराष्ट्र के पूंछने पर संजय बताता है👉हे! राजन आपके "सबकुछ बन्दी" की घोषणा के बाद से ही राज्य के गरीब भूखमरी की कगार पर है। आवागमन के सभी साधन बन्द होने के कारण ये सब हजारो किलोमीटर दूर अपने गाँव जाने को ब्याकुल है। मै देख रहा हूं👉 आपके राज्य मे जितने भी हाई-वे है, हर तरफ सिर पर गठरी लादे अपने छोटे बच्चों को गोद मे उठाये गरीब मजदूरों की भीड़ अपने मूल स्थान की ओर पैदल ही प्रस्थान कर रही है। हर व्यक्ति के पैरों मे छाले है, पेट और गाल पिचके है। ओंठ प्यास के कारण सूखे है, फिर भी वो अनवरत अपने गाँव की ओर रुख किये हुये है।

अंधा धृतराष्ट्र बेचैन हो उठता है👉खाने को नही है तो ये गरीब अपने ठेकेदारों और मालिकों से खाने को क्यों नही माँगता? संजय बोला👉हे! राजन इनके सभी ठेकेदार और मालिक आपकी तरफ से युद्ध क्षेत्र में है। इसपर धृतराष्ट्र कहता है👉संजय पांडवों के खेमे के समाचार दो, संजय बोला👉हे! राजन आपके भ्राताश्री के पाँचों पुत्र देवकीनन्दन के साथ युद्ध की योजना में व्यस्त है। इसपर धृतराष्ट्र घिघियाते हुए बोले कि राज्य मे बीमारी की आफत है, लोग भूखे प्यासे पैदल गाँव को प्रस्थान कर रहे है और ये सब युद्ध की योजना मे व्यस्त है। अरे इनको तो आकर युद्ध ना करने की विनय करनी चाहिए और इन गरीबों की सेवा कर अपने दैवीय कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यहां पर संजय से बुद्धि का उपयोग कर दिया और बोला👉हे! राजन यह आपके लिए घातक सिद्ध होगा इनकी सेवा करने से पांडव पुत्रों की यश और कीर्ति बढ़ेगी और प्रजा बड़ा हिस्सा उनके पक्ष मे हो जाएगा।

तभी विदुर का आगमन होता है और वो संजय को अपनी मर्यादा का भान कराते है। धृतराष्ट्र नमन करने के बाद विदुर संजय से कहते है, तुम अपने राजा की बुद्धि को कमतर आंक बैठे। यश कीर्ति तो तब बढ़ेगी जब वो प्रजा की सेवा को उपलब्ध होगे। युद्ध रोकने के निवेदन के साथ ही उनको बन्दी बनाकर कारागृह मे डाल दिया जायेगा। मजदूर भूखा, प्यासा, फटेहाल ही गाँव जायेगा उसकी आत्मनिर्भरता के बीच मे राज्य रोंढ़ा नही बनेगा। फिर सवाल पांडवों से किये जायेगे की इन्होने बीमारी मे क्या किया? गरीब मजदूर के उत्थान के लिये क्या किया? और बन्दी की आवाज कैदखाने से बाहर नही आती संजय। राजन का सुझाव स्वयं के कुल और ताज की रक्षा के लिये धर्मोच्युत है।

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