किसान आंदोलन में किसान और सरकार के बीच के "अंतर"

क्या किसानों ने पूरे देश में अन्ना आंदोलन जैसे मशाल जला दी है ?

Update: 2020-12-08 06:36 GMT

◆ क्या किसानों ने पूरे देश में अन्ना आंदोलन जैसे मशाल जला दी है ?

◆ क्या किसानों की मांग जायज है या सिर्फ जिद?

◆ क्या किसान बिल सच में किसान विरोधी है?

अगर कोई मुझसे उपरोक्त प्रश्नों को पूछें तो मेरा उत्तर होगा नहीं क्योंकि यह किसान आंदोलन अब किसानों का आंदोलन नहीं बल्कि किसानों की खाल ओढ़े तमाम ऐसे संगठनों का हो गया है जिन्होंने देश में समय-समय पर अराजकता फैलाई है और इस बात की पुष्टि स्वयं इन संगठनों के द्वारा सरकार से मांगी गई मांगों के बिंदु 6 पर साफ-साफ लिखा था, इन तमाम संगठनों के द्वारा अस्पष्ट लिखा गया था कि सरजील इमाम, उमर खालिद, शहला रशीद, जैसे तमाम कथित सामाजिक कार्यकर्ता जो कभी देश को तोड़ने की बात करते हैं, कभी कश्मीर को अलग देश बनने की बात करते हैं, कभी जेएनयू में देश विरोधी नारे पढ़ते हैं, इनके ऊपर से दर्ज मुकदमों को वापस लिए जाने की मांग की गई थी, और जो गिरफ्तार हैं ऐसे ढोंगी सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा कराने की बात मनवाने पर आ जाना और हां या ना में जवाब मांगना इससे स्पष्ट है कि पंजाब के मुख्यमंत्री श्री अमरिंदर सिंह की जो चिंता थी कि यह आंदोलन देश के लिए खतरा है वह जायज थी, और और कल दिल्ली में ही एक मुठभेड़ में पांच आतंकियों को जिंदा पकड़ना और उनके पास है तमाम ऐसे सामानों का मिलना जो देश की सुरक्षा के लिए घातक हो, भारी मात्रा में नकदी का मिलना कहीं ना कहीं दुखद है ।

दुनिया के कुछ देश के द्वारा इस कथित आंदोलन पर बयान देना भी दुखद है उसकी निंदा करनी चाहिए और भारत सरकार को स्पष्ट उन देशों से कह देना चाहिए कि हमारे आंतरिक मामलों में दखल ना दें । तमाम राजनीतिक दल जो अपनी जमीन तलाश रहे हैं या अपनी खोई जमीन वापस लाना चाहते हैं उनको भी देश पहले की भावना से काम करना चाहिए देश को जलाकर व्यवस्था को बाधित कर के लोकतांत्रिक जमीन को हासिल नहीं कर सकते हैं और ना ही ऐसे जमीन मिल ही जाएगी क्योंकि जागरूक अन्नदाता आज भी अपने खेतों में काम कर रहा है उनको उनकी उपज का पूरा मूल्य मिल रहा है सरकार बार-बार कह रही हैं की एमएसपी बंद नहीं होगी यह जारी थी,हैं,और रहेगी उसके बाद भी सरकार इन संगठनों के द्वारा मांगी गई मांगों पर बार-बार बैठक कर रही है और लिखित आश्वासन देने को तैयार है उसके बाद में इन संगठनों का अड़ियल रवैया कहीं ना कहीं मन में शंका पैदा करता है जो शंका पंजाब के मुख्यमंत्री की थी।देश का अन्नदाता इन संगठनों और राजनीतिक दलों के जाल में नहीं फंसने वाला है क्योंकि वह खुद हैरान है इनके अड़ियल रुख और इनकी देश विरोधी मांगों को लेकर के और अन्नदाता को भी पता है उनका असली हितैषी कौन हैं, और किसके समय मे खाद और बीज के लिए लाठी खाना पड़ता था ।

पहले किसानों को पहले यूरिया के लिए लाठी खाना पड़ता था जिन के समय में किसानों को यूरिया के लिए लाठी खानी पड़ी थी आज वह किसान हितैषी होने का ढोंग रच रहे हैं अगर इन सभी दलों को किसानों की चिंता होती है और ईमानदारी से किसान हित की बात कर रहे होते तो यह किसान बिल पर संसद के अंदर मौन न रहकर चर्चा करते हैं जैसे पहले के दौर में सदन के अंदर चर्चाएं होती थी स्वस्थ बहस करते हैं सरकार से जवाब मांगते हैं सरकार जवाब देती या सरकार फेल होती है यह पूरा देश देखता और पूरा देश तय कर देता है कि कौन गलत कौन सही । लेकिन यह दल और कथित संगठन देश विरोधी ताकतों के साथ खड़े होकर के देश को बंधक बनाने का जो कुत्सित प्रयास कर रहे हैं यह देश का जागरूक किसान और जागरूक जनता सफल नहीं होने देगी क्योंकि किसान अपने सशक्त कंधों का इस्तेमाल किसी राजनीतिक दल को करने की इजाजत नहीं दे सकता ,और यह दल देश विरोधी ताकतों के साथ खड़े होकर के अपनी क्षमता पर स्वयं प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं सरकार ने हमेशा कहा है कि वह किसान बिल पर चर्चा करने के लिए तैयार है अगर जरूरत पड़ी तो संशोधनों के लिए तैयार है सरकार की तरफ से कोई जिद नहीं है कि हम कानून में संशोधन नहीं करेंगे या हम चर्चा नहीं करेंगे उसके बाद भी विपक्ष और संगठन चर्चा से भाग रहे हैं यह कहीं ना कहीं इनका किसानों के प्रति लगाव नहीं बल्कि देश में आग लगाने की मंशा हैं।

देश के सबसे बड़े राज्य के मुखिया उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार 2017 से लेकर के आज तक किसानों के लिए बड़े-बड़े ऐतिहासिक कदम उठाए हैं कर्जमाफी उनकी पहली कैबिनेट में शामिल था वर्षों से बंद पड़े क्रय केंद्रों के ताले 2017 में योगी सरकार आने के बाद खुलते हैं,2017 के बाद से किसानों की फसलों की रिकॉर्ड खरीदारी और रिकार्ड भुगतान किसानों के प्रति योगी जी की सार्थक एवं सकारात्मक कार्यशैली है किसानों की बात करने वाले संगठन अगर अपने आसपास के क्रय केंद्रों पर नजर रखें सरकार की व्यवस्था में सहयोग करें तो शायद देश भर में उत्तर प्रदेश की तरह सभी किसानों को उनकी फसल का पूरा मूल्य मिल सके ।

आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में बीते साढे़ 3 वर्षों में प्रदेश सरकार के बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा किसानों के लिए गया है उत्तर प्रदेश में पहले गन्ना किसानों को अपनी फसल बेचने के बाद भुगतान के लिए आंदोलन करना पड़ता था लेकिन वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है, 2017 में सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना किसानों की वर्षों से चली आ रही समस्या का भी समाधान किया है योगी सरकार ने गन्ना किसानों की पिछले कई वर्षों के जो भुगतान बकाया थे जो पूर्ववर्ती सरकारों के समय में नहीं दिए गए थे उन गन्ना किसानों का भी फसल मूल्य का बकाया भुगतान योगी सरकार ने आते ही किया. जो आज किसानों के समर्थन में सड़कों पर हैं लेकिन जब ये सरकार में थे तो इन्होंने किसानों के फसल का भुगतान तक नहीं किया था उस समय का भी भुगतान किया उनके समय के बकाए का भुगतान भी योगी सरकार ने किया । पूर्ववर्ती सरकारों ने तो चीनी मिलों को भी बंद कर दिया था और कुछ मिलों को बेच दिया था योगी सरकार के आते ही मीलों को भी चालू किया गया.

मेरा यह सब बताने का मतलब इतना ही है कि अगर आपको किसान हित की बात करनी है तो आप प्रदेशों की विधानसभा में चर्चा करें ,देश के संसद में चर्चा करें तो आपके लिए सारे विकल्प खुले हैं लेकिन आप सड़क पर आम जनों को परेशान कर के व्यवस्था को बाधित कर के अगर राजनीतिक दल कुछ हासिल करना चाहते हैं तो यह बात जान ले की अन्नदाता मूर्ख नहीं है, समझदार है और आने वाले भविष्य में अन्नदाता स्वयं इन राजनीतिक दलों को सड़कों पर लाकर खड़ा कर देगा.

डॉ रजनीश सिंह

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व भाजपा मीडिया प्रभारी हैं)

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