"रज़िया सुल्तान" से "सरफ़रोश" तक: निदा फ़ाज़ली का अमर सफर... "मैं निदा"
पद्मश्री निदा फ़ाज़ली की रूह को परदे पर उतारने वाली अतुल पाण्डेय और अतुल गंगवार की बेमिसाल पेशकश
नई दिल्ली, 26 अप्रैल। उर्दू और हिंदी के महान शायर और संवेदनशील इंसान पद्मश्री मुक्त़दा हसन निदा फ़ाज़ली पर आधारित फिल्म "मैं निदा" की स्पेशल स्क्रीनिंग शनिवार को नई दिल्ली के महादेव रोड स्थित NFDC ऑडिटोरियम में आयोजित हुई। फिल्म जानी-मानी हस्तियों अतुल पाण्डेय और अतुल गंगवार की एक खास पेशकश है, जिसने दर्शकों के दिलों को गहराई से छू लिया।
"मैं निदा" एक ऐसी यात्रा है, जो दिल्ली की गलियों, ग्वालियर की यादों, मुम्बई की साहित्यिक हलचलों और हिंदुस्तानी फलक पर शायरी के उजास के बीच एक संवेदनशील पुल बनाती है। फिल्म में निदा फ़ाज़ली की निजी पीड़ाएँ, उनकी रचनात्मक बेचैनियाँ और इंसानियत के प्रति उनकी गहरी आस्था बेहद खूबसूरती से परदे पर उतारी गई हैं।
ग्वालियर में बीते बचपन से लेकर मुम्बई में स्थापित होने तक और उनकी शायरी में सूरदास, कबीर, तुलसी जैसे संत कवियों के प्रभाव — इन तमाम पहलुओं को अतुल पाण्डेय और अतुल गंगवार की टीम ने बड़े सम्मान और संवेदना के साथ परदे पर जीवंत किया है।
फिल्म की विशेष बात यह भी रही कि इसमें निदा साहब से जुड़े अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों, कलाकारों और संगीतकारों की यादें भी शामिल की गई हैं। निदा फ़ाज़ली के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम को साझा करते हुए निदा में, तलत अज़ीज़, सुधीर मिश्रा, अनंत विजय, अतुल तिवारी, शान, कुलदीप सिंह, अश्विनी चौधरी, मदन मोहन, अतुल अजनबी, अमित राय और प्रशांत सिसोदिया जैसी जानी-मानी हस्तियों ने उनके साथ बिताए लम्हों और उनकी रचनात्मक ऊर्जा के अनछुए पहलुओं को याद किया। उनकी पत्नी मालती जोशी फाज़ली ने भी बेहद आत्मीयता से निदा साहब से जुड़ी निजी स्मृतियाँ साझा कर फिल्म को और भी गहन और भावनात्मक बना दिया।
फिल्म में निदा फ़ाज़ली के फिल्मी सफर का भी जिक्र है — "रज़िया सुल्तान", "सरफ़रोश" जैसी फिल्मों में दिए गए अमर गीतों की यादें ताज़ा हो जाती हैं। "होश वालों को खबर क्या" और "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता" जैसे गीतों के पीछे छुपी भावनाओं को भी फिल्म बड़े असरदार ढंग से उजागर करती है।
निदा फ़ाज़ली उर्दू और हिंदी कविता के उस विलक्षण स्वर हैं, जिन्होंने पारंपरिक बंधनों को तोड़कर आम इंसान के दिल की आवाज़ को अपनी शायरी में जगह दी। उनकी भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और गहरी अनुभूतियों से भरी रही। उन्होंने कबीर और सूरदास जैसी संत परंपरा को आधुनिक संदर्भों में पेश किया, और इंसानियत को केंद्र में रखकर कविता का नया मानदंड स्थापित किया। उनकी रचनाओं में सादगी, गहनता और जीवन का व्यापक अनुभव झलकता है। उनकी किताबें "दीवारों के बीच", "मुलाक़ातें", "ख़ामोशियाँ बोलती हैं" और "आंधियों के बीच" आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच आदर के साथ पढ़ी जाती हैं।
अपने सृजनशील योगदान के लिए निदा फ़ाज़ली को अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें वर्ष 2013 में भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया "पद्मश्री" प्रमुख है। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, मीरा स्मृति सम्मान और कई अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी सम्मानित किया गया।
उनकी लेखनी ने भारत-पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संवाद को नया आयाम दिया और वे हमेशा एक सेतु की तरह अलग-अलग मजहबों और संस्कृतियों को जोड़ते रहे। "मैं निदा" जैसी फिल्म इस महान शख्सियत के योगदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक खूबसूरत प्रयास है।
अतुल पाण्डेय और अतुल गंगवार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने निदा फ़ाज़ली जैसी गहरी और संवेदनशील शख्सियत को नाटकीयता या कृत्रिमता के बिना, पूरी ईमानदारी और आत्मीयता के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने न सिर्फ निदा साहब के शब्दों को, बल्कि उनकी आत्मा और दर्शन को भी सजीव कर दिया है।
"मैं निदा" उन सभी के लिए एक अमूल्य दस्तावेज है जो ज़िंदगी के अर्थ तलाशते हैं, शायरी से प्रेम करते हैं या इंसानियत की सच्ची आवाज़ को सुनना चाहते हैं। इस बेहतरीन पेशकश के लिए अतुल पाण्डेय और अतुल गंगवार तथा उनकी पूरी टीम निश्चित ही हार्दिक बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने शब्दों और भावनाओं के इस विशाल समंदर को परदे पर इतनी खूबसूरती से उकेरा।
लेखक, फिल्मकार और डॉक्यूमेंट्री मेकर अतुल गंगवार ने इस फिल्म की संकल्पना और निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वहीं अतुल पाण्डेय ने अपने सधे हुए निर्देशन से फिल्म को जीवंतता और आत्मा प्रदान की है। दोनों ने मिलकर निदा फ़ाज़ली की जिंदगी, सोच और फन का ऐसा सजीव चित्रण किया है, जो दर्शकों को भावनाओं के गहरे समंदर में डुबो देता है।
अतुल गंगवार और निदा साहेब के बीच 18 वर्षों का साथ रहा है। अतुल गंगवार द्वारा निर्मित "अदबी कॉकटेल", "उर्दू बाजार", "ग़ज़लनामा", "सुनो तुम" जैसे कई कार्यक्रमों में निदा साहेब ने सक्रिय भूमिका निभाई। "मैं निदा" उनके इसी गहरे रिश्ते और संवेदनशीलता का परिणाम है।
अतुल पाण्डेय के निर्देशन की भी जमकर सराहना हो रही है। उन्होंने रिसर्च, स्टोरीबोर्डिंग और विजुअल नैरेशन में जिस तरह की परिपक्वता, संवेदना और कलात्मकता का परिचय दिया है, वह अद्वितीय है। उनके निर्देशन ने फिल्म में गहरी आत्मीयता और सहजता घोल दी है। अतुल पाण्डेय का निर्देशन दर्शकों को सीधे निदा फ़ाज़ली के दिल और सोच से जोड़ देता है।
"मैं निदा" महज एक डॉक्यूमेंट्री नहीं, बल्कि निदा फ़ाज़ली साहब के शब्दों और संवेदनाओं का जीवित दस्तावेज है। अतुल पाण्डेय और अतुल गंगवार ने मिलकर एक ऐसी कृति रची है, जो दिल को छूती है, आँखें नम करती है और इंसानियत के सबसे खूबसूरत पहलुओं से रुबरु कराती है। यह फिल्म निदा साहब को एक सच्ची, सुंदर और कालजयी श्रद्धांजलि है।