एक जुझारू स्त्रीवादी का जाना…
कोरोना के बाद किसी लाइव में युवाओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने एक पंक्ति कही थी जो हूबहू तो नहीं याद है लेकिन जिसका भाव बहुत कुछ यह था- स्त्रीवादी होना बहुत आसान है जिस पल मन में अन्याय और ग़ैर बराबरी से जूझने की बात आ गई बस उसी पल से तुम स्त्रीवादी हो. लेकिन स्त्रीवादी होना बहुत मुश्किल है, कांटों की राह पर चलना है, हर वक़्त आप जूझते हो, देखो, मेरे जैसा हाल हो जाता है…और फिर एक खिलंदड़ हँसी. उनका बोलना बतियाना हमेशा बांध लेता था लेकिन उस दिन वह बात जैसे मन के किसी कोने में अटक गई.
उन्होंने जैसे लड़ने के लिए ही जन्म लिया. कमला दी अपनी वॉल पर पिछले दिनों से लगातार कैंसर से जूझती हुई दिख रही थीं, बिना माथे पर एक भी शिकन के, हार न मानती हुईं, गाती और ड्राइव करती हुईं, वह लगातार जूझ रही थीं, दूर से उन्हें यूँ देखना दिल तोड़ता था.
स्त्री अधिकारों की पैरोकार कमला दी अकादमिक कामों और एक्टिविज़्म दोनों में सक्रिय रहीं, न जाने कितनी स्त्रियों की हिम्मत, आख़िरी साँस तक जूझती हुई योद्धा कमला भसीन का जाना एक बहुत बड़ी क्षति है. यह जगह कभी नहीं भर सकती जो उनके जाने से ख़ाली हो गई, लेकिन हाँ हमारे पास उनके किए कामों की धरोहर है जो पीढ़ियों तक काम आएगी.
आपकी सोच और ऊर्जा हम सबमें भर जाए. आख़िरी सलाम कॉमरेड! सिस्टर! ज़िंदाबाद ✊🏾
- सुजाता (सहायक प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय )