संजय कुमार सिंह
विकास दूबे की हत्या के पक्ष में कोई तर्क हो ही नहीं सकता। कोई किसी को मारने की कोशिश करे, उसे वह मार दे तो सही है। पर बाद में पुलिस या मरने वाले की ओर से कोई भी (दोस्त, बेटा, भाई, पिता ... ) उसे मार दे - यह कैसे सही हो सकता है। जाहिर है, हत्या या अपराध के बाद का काम पुलिस - सरकार का है। इसमें मामले की तहकीकात से लेकर गवाह जुटाना, गवाही दिलाना और अभियुक्त के बचाव के लिए भी वकील देना सरकार का काम है। यह सब इसलिए कि दोषी भले बच जाए निर्दोष को सजा न हो। सरकार या ताकतवर लोग निर्दोष को सजा न देने लगें। यह पाकिस्तान में हुआ है। भारत में कुछ लोग यही चाहते हैं।
ऐसा नहीं है कि दोषी का बच जाना आम है। सबको पता है क्यों और कैसे दोषी बचाए जाते हैं। पर इसे देखना भी पुलिस और सरकार का काम है। न्याय व्यवस्था यही है। इसके तहत ऊपरी अदालत में अपील से लेकर सरकारी वकील बदलना,गवाही दिलवाना, गवाह की सुरक्षा आदि आदि तमाम तरीके हैं। विकास दूबे बच गया था क्योंकि पुलिस ने गवाही नहीं दी। अगर पुलिस गवाही नहीं देगी तो आम गवाह कहां टिकेंगे। और फिर व्यवस्था का क्या होगा? कायदे - कानून का क्या होगा। पुलिस अपराधियों को गोली से उड़ा देगी और नेता अपने खिलाफ मुकदमे वापस ले लेगा। पुलिस और नेता ही जो चाहेंगे वही चलेगी। पुलिस सरकारी पार्टी के गुंडे की तरह काम करेगी?
विकास दुबे की हत्या जायज है तो स्वामी चिन्मयानंद का वीडियो सब ने देखा है। कानूनन सहमति से भी मालिश नहीं करवा सकते। गोली मरवा दीजिए या कानून ही दुरुस्त कर दीजिए। पर दोनों नहीं होगा। क्योंकि अराजकता नेताओं के लिए ढाल है। बलात्कार के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर को गोली मार दी जानी चाहिए? उसके बलात्कार का वीडियो भले नहीं हो पर लड़की के पिता के साथ थाने में क्या सलूक हुआ था उसका वीडियो तो है ना? थाने वालों को गोली मार दी जाए? नेता यही चाहते हैं। विरोधियों को निपटाना इससे बिल्कुल आसान हो जाएगा। पर यह जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली व्यवस्था है।
इसमें पैसे देकर काम कराया जाता है नहीं तो पद भी बांटे जाते हैं। नालायकी और बेईमानी भी होती है। इसी को भ्रष्टाचार कहा जाता है। जोअच्छा और खराब शासन कहा जाता है। ठीक लगे उसपर चुप रहो दूसरे पर बोलने लगो। यह न्याया नहीं है। जो सवाल पूछे उसके खिलाफ जांच बिठा दो। यह राज करने का हथियार नहीं है। वैसे भी अपराध सिर्फ हत्या नहीं होती है। हत्या कर दी और उसके बदले हत्यारे की हत्या कर दी। दंगे भड़काने से लेकर सरकार संपत्ति को नुकसान के भी मामले होता हैं। सब मुख्यमंत्री तय कर देंगे। वही जो अपने खिलाफ और दूसरे 20,000 हजार मामले वापस ले चुके हैं या लेने के समर्थक हैं?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार है.