मुलायम सिंह की आखिरी सरकार थी. एक जाड़े की दोपहर, एक रुटीन प्रेसकांफ्रेन्स थी. सदा की तरह दाहिने अमर सिंह बैठे थे जो फिल्मी गानों और शायरी की लग्गी से सवालों को टाल रहे थे. उनके दांत जरा बाहर को निकले हुए थे और बाल जरा लंबे, जिन्हें आत्मविश्वास से आगे को खिंची गरदन और अक्सर गला खराब रहने से खरखरी आवाज के साथ मिला देने पर हर रेस में प्रतिद्वंदी कछुओं से जीतने वाले खरगोश की छवि बनती थी. इस पर पत्रकार आपस में हंस लेते थे लेकिन सामने गंभीर ही रहा करते थे. उन्हीं दिनों उनका एक उपनाम माठा (माननीय ठाकुर) भी पड़ गया था.
मुलायम सिंह ने सरकार के काम गिनाने के बीच में कई बार कहा... हमारे अमर सिंह को देखो! कैसा व्यक्तित्व बना है, कितने लोकप्रिय हैं. यह उनकी शैली थी, वे असंबद्ध बातों को भी जब चाहे जैसे बोल दिया करते थे. सामने वाला भले कुछ न समझे, उनका अपना मकसद पूरा हो जाया करता था.
बहरहाल प्रेस कांफ्रेस खत्म होने पर टाई लगाए एक अधेड़ पत्रकार, तेज हवा में गंजे सर को किसी तरह छुपाते, गिने चुने बालों को एक हाथ से दबाते हुए लपका, सर, बहुत दिन से अप्वाइंटमेन्ट के लिए लगा था, आपका इंटरव्यू लेना है!
अमर सिंह को एयरपोर्ट निकलना था, उन्होंने उसे अपनी गाड़ी में बैठा लिया. थोड़ी ही देर बाद अगले चौराहे पर वह पत्रकार मुंह लटकाए खड़ा दिखाई दिया. बाकियों ने पूछा क्या हुआ, तुम तो इंटरव्यू करने वाले थे! उसने नखलऊवा अंदाज से कहा, 'अमां, नेता जैसा नेता तो हो! हम हर किसी ऐरेगैरे का इंटरव्यू थोड़े न करते हैं.' उसने पैदल समाजावदी पार्टी के दफ्तर जाकर अपनी गाड़ी उठाई (जिसकी छत के चारों तरफ टिन के पैनल लगे हुए थे जिन पर लाल-सफेद अक्षरों में बीबीसी लिखा हुआ था) और चलता बना.
हुआ यह था कि एक किलोमीटर के रास्ते में अमर सिंह ने उससे दो बार पूछा, आप किस मीडिया संगठन से हैं. उसने बताया बीबीसी से हूंं. अंततः अमर सिंह ने कहा, लखनऊ में बीबीसी के संवाददाता तो रामदत्त त्रिपाठी हैं, मैं उनको जानता हूं. पत्रकार ने कहा, दरअसल हमारा "बहार-ओ-चमन ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन" है.
इसके बाद अमर सिंह ने उसे गाड़ी से उतार दिया था.