राजेन्द्र शर्मा
देख लीजिए, मोदी जी का विरोध करते-करते ये विरोधी, न्यायपालिका का भी विरोध करने तक चले गए हैं। गुजरात के नरोडा गाम में 2002 के तूफान में 11 मौतों के मामले में, अदालत ने सड़सठ के सड़सठ आरोपियों को बाइज्जत बरी क्या कर दिया, विरोधी अदालत पर ही सवाल उठाने लग गए। कहते हैं -- सब के सब बरी; बाबू बजरंगी भी, माया कोडनानी भी, जयदीप पटेल भी। सब के सब बरी, केस क्लोज्ड। मतलब ये कि मरने वाले ग्यारह को मारने वाला कोई भी नहीं! यानी मरने वालों ने खुद ही अपनी हत्या कर ली। हत्या में भी आत्मनिर्भरता -- वाह डैमोक्रेसी की मम्मी जी, वाह! गुजरात वाले इंडिया में भी सिंपली मम्मी जी ही हैं या साक्षात ग्रांड मदर जी हैं!
हमें तो शक है, विरोधियों के नरोडा गाम केस के फैसले के विरोध के पीछे भी मंशा कुछ और ही है। जरूर निगाहें नरोडा गाम मामले पर हैं, पर निशाना कहीं और है। कहां और क्या, सूरत में राहुल गांधी की सजा बहाल रखने वाली अदालत के फैसले पर। धोबन पर बस नहीं चला, तो लगे गदहिया के कान उमेठने। अरे भाई सोचने की बात है कि डैमोक्रेसी की मदर जी हों या ग्रांड मदर जी, अपने सरनेम को खराब करने वाले को, माफी थोड़े ही मिल जाने देंगी। और रही बात बाजू बजरंगी, माया कोडनानी वगैरह की, तो वो तो इतने इज्जतदार हैं कि उन्हें तो पहले ही नरोडा के गुलबर्ग सोसाइटी मामले में 68 या उससे भी ज्यादा मौतों के मामले मेंं भी, बाइज्जत बरी किया जा चुका था। और कोई मामला हुआ होगा, तो उसमें भी बरी होंगे और बाइज्जत ही बरी होंगे! बिलकीस बानो मामले में माफी लेकर बरी होने वाले भी, एक दिन माफ नहीं पूरे बरी किए जाएंगे। और बैस्ट बेकरी वगैरह वाले भी। कोई कसूरवार नहीं होगा, न हत्या का, न लूटपाट का, न आगजनी का, न बलात्कार का! सब बरी होंगे।
अगर विरोधी फिर भी किसने मारा, ये किसने किया, वो किसने किया का शोर मचाएंगे, तो उन्हें उसी अदालत के सामने सबूतों के साथ साबित करना होगा कि वाकई कुछ हुआ था। कुछ हुआ साबित तो कर नहीं पाएंगे; डैमोक्रेसी की मम्मी को झूठ-मूठ बदनाम करने के लिए, ससुरे सारे के सारे जेल जाएंगे। आप देखते रहना।
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं।)