यूपी पुलिस में तकरीबन बाइस साल बाद घुड़सवार पुलिस कर्मियों की भर्ती हुई है. सालों से चली आ रही "फेस आऊट" करने की योजना के विपरीत, घुड़सवार पुलिस को पुनः एक नई ऊर्जा से भरने की ये एक नई कोशिश है. ये कोशिश कामयाब हो. घुड़सवार पुलिस अपना पुराना जलवा फिर कायम कर सके. पुलिस और घोड़ों की दोस्ती बनी रहे.
बकौल रिटायर्ड डीजीपी उत्तरप्रदेश विक्रम सिंह साहेब
"हमारे समय में कोई भी बंदोबस्त, मेला ड्यूटी, रात्रि गश्त घुड़सावर पुलिस के बगैर पूरी नहीं होती थी. पुलिस में उत्कृष्ट अफ़सर भी वही निकलते थे जो अच्छे घुड़सवार हुआ करते थे. जैसे स्वर्गीय घमंडी सिंह आर्या, श्री के पी श्रीवास्तव, श्री बीपी सिंघल, श्री त्रिनाथ मिश्रा, श्री प्रकाश सिंह आदि."
अकादमी के अपने घुड़सवारी के इंस्ट्रक्टर्स, नवल सिंह और हनुमान सिंह को याद करते विक्रम सिंह साब कहते हैं कि, "वो असली के पुलिस वाले थे, बेहद रोबीले." युवा अफसरों की प्रशंसा और डांट के उनके तरीके भी नायब थे.
प्रशंसा करनी हो तो कहते थे, "घोड़े पे बैठ कर क्या खूबसूरत, जवान लग रहे हैं. साहेब ऐसे ही फोटो खिंचवा लो और शादी के प्रपोजल में भेज दो, कोई मना नहीं कर पाएगा."
और अगर डांट लगानी हो तो कहते थे…"साहेब इतनी कृपा करना, घोड़े पे बैठ कर फोटो न खिंचवाना, मेमसाब तलाक दे देंगी आपको. घोड़े पे ऐसे भौंडे तरीके से बैठे हैं जैसे कोई बुढ़िया बैठी हो घोड़े पे."
ये वो इंस्ट्रक्टर्स थे जिन्होंने न सिर्फ़ इन पुराने पुलिस अफसरों को घोड़े की लगाम पकड़नी सिखाई बल्कि साफा, सोलह टोपी, पित्थ हैट का फर्क समझाया. जिन्होंने इन्हें घोड़े की सारी चालें सिखाईं. एड़ लगाने के साथ साथ जंप्स के गुर सिखाए. वो बात और है कि शौकीन अफ़सर आगे चल कर नेज़ाबाज़ी भी कर लिया करते थे.