पढ़िए शारिक रब्बानी की नजम :

यहां है हिन्दु मुसलमांव सिख ईसाई भी, यहां है दाना व पानी व फल दवाई भी..

Update: 2021-08-14 08:41 GMT

नज़्म

सुकून बनके सभी के दिलों पे छायी है

क़रार लेके वतन में बहार आयी है

मेरे वतन का हर इक ज़र्रा ज़र्रा प्यारा है

खुदा ने खूब सजाया है और संवारा है

वफा खुलूस मुहब्बत का क्या उजाला है

मेरे वतन का ज़माने में बोल बाला है

कलेजा चीर के अपना दिखा नहीं सकते

है प्यार कितना वतन से बता नहीं सकते

जो रंग रंग के फूलों से पुर गुलिस्तां है

ये अरज़-ए-हिन्द जहांभर में खूबज़ीशां हैं

जमीन खुश्क, नदियां चटान पाओगे

बलन्द-ओ-बाला पहाड़ो की शान पाओ

मेरी निगाहों को क्या क्या दिखाई देता है

हरा भरा हर इक सहरा दिखाई देता है

यहां है हिन्दु मुसलमांव सिख ईसाई भी

यहां है दाना व पानी व फल दवाई भी

मुझे तो खाके वतन से अजब मुहब्बत है

यहां के जर्रेसे "शारिक" बड़ी अकीदत है


- शारिक रब्बानी , प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार

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