फ़्रांसीसी इतिहास का मौन साक्षी, युवाओं का वृंदावन और वृद्धों की काशी - चंदन नगर
1973 में फ़्रांसीसियों के कदम रखने के बाद यह कोलकाता से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण व्यापार व वाणिज्य का केंद्र बन गया था । पर धीरे धीरे इसका व्यापारिक महत्व कम होता गया
चंदन नगर और पुडुचेरी ये दो शहर भारत में फ़्रांसीसी साम्राज्य की जुड़वां संतान हैं । दोनों जुड़वां शहरों में कई समान बातें है ।दोनों में ही फ़्रांस की शिल्पकला और वास्तुकला के अवशेष प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं ।दोनो ही शहर साफ़ - सुथरे और उजले हैं । दोनों को ही जल के साहचर्य का स्पर्श प्राप्त है ।चंदन नगर को हुगली नदी का तो पुडुचेरी को बंगाल की खाड़ी का । ख़ास बात तो यह कि 1947 में देश की आज़ादी के बाद भी ये दो शहर फ़्रांसीसी शासन के अधीन बने रहे ।
तो चलिए मेरे साथ आज इन्ही में से एक एक शांत , सौम्य और उजला शहर चंदन नगर की सैर पर । ज़्यादा बड़ा नहीं एक छोटा सा शहर जिसके कोने कोने में बिखरे हुये हैं फ़्रांसीसी वास्तुकला और शिल्पकला की इमारतों के अवशेष ।कोलकाता से लगभग 35 कि.मी. की दूरी पर हुगली नदी के तट पर बसा चंदन नगर अतीत में फ़्रांस के शासन के अधीन था इसलिए फ़रास डाँगा कहलाया जाता रहा । फ़रास यानी फ़्रांसीसी और डाँगा मतलब भूमि ।बाद में चंदन की लकड़ी के फलते फूलते व्यापार के कारण इस शहर का नाम चंदन नगर पड़ा । इस जगह को चंद्रनगर भी कहा जाता है और कुछ लोग इसे 'मून सिटी' भी कहते हैं क्योंकि यहाँ हुगली नदी अर्द्ध चंद्राकार में है ।
1973 में फ़्रांसीसियों के कदम रखने के बाद यह कोलकाता से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण व्यापार व वाणिज्य का केंद्र बन गया था । पर धीरे धीरे इसका व्यापारिक महत्व कम होता गया । देश की आज़ादी बाद जून 1948 में फ़्रांसीसी सरकार ने यहाँ जनमत संग्रह कराया और चंदन नगर की 97 % जनता ने भारत में रहने के पक्ष में मतदान किया ।मई 1950 में यह शहर फ़्रांसीसी शासन से मुक्त हो गया । पर पर भारत में शामिल होने की इसकी नियति की तिथि तो कुछ और ही थी ।यह शहर विधिवत २ अक्तूबर , 1954 में बंगाल में शामिल हो सका । यह है चंदन नगर का अद्भुत इतिहास ।
हावड़ा रेलवे स्टेशन से हम झिक झिक रेल गाड़ी से लगभग पौन घंटे में चंदन नगर पहुँच चुके थे ।ठहरने के लिए हम स्टेशन से सीधे स्ट्रैंड रोड पर चन्दन नगर नगरपालिका के अतिथि गृह 'रवीन्द्र भवन' पर जा पहुंचे । रवीन्द्र भवन - यह जगह ठहरने के लिए आरामदेह तो थी ही यहाँ से शहर घूमने के लिए भी सुविधा जनक । सामने पक्की चिकनी सड़क । सड़क के उस पार गंगा किनारे पक्की चौड़ी स्ट्रैंड ।।कुछ ही दूरी पर म्यूज़ियम , चर्च , पाताल बाड़ी । सभी जगह पैदल ही घूमना हुआ । बाक़ी जगहों के लिए यहाँ की भाषा में ' टोटो ' यानी कि ऑटोरिक्शा से काम चल गया ।
जिस बात के लिए चंदन नगर सबसे चर्चित है वह यही हुगली नदी के किनारे बना स्ट्रैंड है ।लगभग 1 कि.मी. लम्बी और 7 मीटर चौड़ी यह स्ट्रैंड हर मौसम में , हर उम्र के लोगों के टहलने और मौजमस्ती के लिए एक लोकप्रिय स्थान है । गंगा नदी के किनारे इतना साफ़ सुथरा, घने वृक्षों की छाँव वाला , सुव्यवस्थित स्ट्रैंड हमने पहली बार यहीं देखा । प्रातः भ्रमण और सांध्य भ्रमण दोनों के लिए इससे अच्छी जगह और क्या हो सकती है ।यहाँ की शीतल हवा , नदी के जल की छपाक ध्वनि और मिट्टी की सोंधी महक मन को मोह लेती है ।जाड़े में तो यहाँ पूरी दोपहरी धूप छाँव में नदी के दृश्य देखते हुये और अपने पसंद की किसी किताब का पन्ना पलटते हुये बितायी जा सकती है ।
फिर शाम को टहलते हुये स्ट्रैंड के आख़िरी छोर तक पहुँच कर उस रहस्यमय ' पातालबाड़ी' को टुकुर टुकुर निहारते रहे क्यूँकि हम भीतर नहीं जा सकते थे ।यहां रोबि ठाकुर प्रायः आकर ठहरते थे ।अपने कई उपन्यासों और आत्मकथा में उन्होंने इसका ज़िक्र किया है । पातालबाड़ी के कमरों के फ़र्श सीढ़ीनुमा है और और सबसे नीचे बरामदे का फ़र्श नदी से मिला हुआ है ।वहाँ सामने खड़े खड़े हम एक कल्पना लोक में पहुँच गए ,अतीत के दिनों में , सामने बजरा - जिसमें बैठे हैं किशोर रोबि , नोतुन बौठान कादम्बरी और ज्योतिदा । रोबि ने कोई नया गीत लिखा है जिसे वह सुना रहे हैं अपनी नोतुन बौठान को और बौठान सुन रही है , देख रही है अपनी पुलक भरी आँखों से ।
कितनी ही सुंदर स्मृति तो जुड़ी है इस स्ट्रैंड से । यहीं पर सुजाता फ़िल्म का गीत , ' सुन मेरे बंधु रे ' को मशहूर अदाकारा नूतन और सुनील दत्त के साथ फ़िल्माया गया था जिस दृश्य की याद कर मन भावुक हो उठता है , गीत के बोल कानों में गूंज उठते हैं ।स्ट्रैंड की छत के नीचे नदी के जल में पैर डालकर जल को हिलोरना , लहरों पर अस्त रवि के अरुण आलोक की झिकमिक और तैरते हुये नावों को देखना और किसी माँझी को भाटियाली गाना गाते हुये सुनना यहाँ का एक रोमांचक अनुभव था ।
स्ट्रैंड से ठीक पहले है फेरी घाट जिसे श्यामा चरण रक्षित ने अपने पिता के नाम पर बनवाया था । रक्षित घाट के नाम से मशहूर इस घाट से हमने फेरी में बैठकर सम्पूर्ण चंदन नगर का विहंगम दृश्य देखा । वापसी में घाट के भव्य द्वार पर निगाह पड़ी । खम्भों पर कलात्मक सजावट है । भारतीय चित्रकला में हाथी,मोर आदि के चित्र बहुतायत में पाए जाते हैं ।यहाँ भी द्वार के ऊपर दो विशाल हाथियों के सूँड़ और फूलों की चित्रकारी है ।
फ़्रांसीसी इमारतों में यहाँ जो सबसे महत्वपूर्ण है और सबसे पहले जिस जगह पर हम गए वह है चंदन नगर के प्रथम फ़्रांसीसी गवर्नर डुप्ले का आवास जो अब म्यूज़ियम में तब्दील हो चुका है । यह म्यूजियम स्ट्रैंड के दूसरी ओर मेन रोड पर बना है । यह हमारे सामने चित्रों एवं मॉडेल्स की सहायता से नगर का भूगोल, इतिहास और फ़्रांस व इंग्लैंड के बीच के युद्ध की दास्तान का बयान करता है। लड़ाई में प्रयुक्त 18 वीं सदी की तोपें , अस्त्र - शस्त्र और डुप्ले द्वारा व्यवहार में लायी गई वस्तुएँ सोफा,मेज़ आदि फ़र्निचर प्रदर्शित हैं। इनमें विशेष है गवर्नर डूप्ले का ऊँचा पलंग और उसने लगी लकड़ी की सीढ़ी ।गाइड के यह बताने पर कि नाटे क़द के होने के कारण डुप्ले पलंग पर सीढ़ी से ही चढ़ा करते थे सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी ।
इस भारत- फ़्रांस सांस्कृतिक संग्रहालय के एक कमरे में यहाँ के प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस और कानाई लाल दत्त के चित्र लगे हैं ; साथ में राजा राम मोहन राय , ईश्वर चंद्र विद्यासागर , स्वामी विवेकानंद , रविंद्र नाथ ठाकुर आदि के भी चित्र लगे हुये हैं । अगर इतिहास में रुचि है तो यहाँ कुछ समय बिताना आनंद दायक होगा ।
ख़ास बात जो हमें बतायी गयी कि यहाँ आज भी फ़्रांसीसी भाषा सिखाने के लिए नियमित रूप से क्लास लगती है । संयोग कि बांग्ला भाषा की तरह फ़्रेंच भाषा भी एक मीठी और कोमल भाषा मानी जाती है और जिस भाषा की चर्चा आज भी चंदन नगर में होती है ।यह इमारत अब चंदन नगर म्यूज़ियम एंड इंस्टिट्यूट नाम से जानी जाती है और हमने देखा इसका सुंदर ढंग से संरक्षण किया गया है । म्यूज़ियम में सभी विवरण बांग्ला व अंग्रेज़ी के साथ फ़्रेंच भाषा में भी है ।
म्यूज़ियम से कुछ दूर फ़्रांसीसी वास्तुकला की सुंदरता का प्रदर्शन करती लगभग 250 साल पुरानी सेक्रेड हार्ट चर्च शान से खड़ी है । शांत परिवेश में अंदर बहुत बड़ा हॉल है, जो ईसा मसीह के जीवन से सम्बंधित चित्रों , मूर्तियों और नक्काशीदार ग्लासवर्क से सुसज्जित है।सभी कुछ फ़्रांसीसी वास्तुकला के नमूने । उचित रख रखाव से यह भव्यइमारत, साथ मेँ सुंदर बड़ा सा बागीचा चर्च की खूबसूरती की कहानी कहती हैं।
अब हम टोटो रिक्शा से घूमने चल पड़े थे । जी टी रोड पर स्थित फ़्रांसीसी कब्रगाह जैसे इतिहास का दलील है । यहाँ न जाने कितने विदेशी चिरनिद्रा में सोए हुये हैं जिनमे गवर्नर डूप्ले भी शामिल है । सभी क़ब्रों पर शिलालेख भी फ़्रांसीसी भाषा में है । इसकी रखरखाव बहुत अच्छी नहीं है देखकर मन उदास सा हो गया था। वैसे भी कब्रगाह एक उदासी से भरी जगह होती है ।
चंदन नगर गेट की चर्चा हमने सुनी थी ।यहाँ पहुँच कर देखा 1937 में निर्मित इस गेट पर फ़्रांसीसी क्रांति का नारा ' स्वतंत्रता , समानता और भाईचारा' फ़्रांसीसी भाषा में ही उकेरा हुआ है । फ़्रांसीसी इतिहास का साक्षी इस गेट को चंदन नगर का प्रवेश द्वार भी कहा जा सकता है । चूंकि यह एक फ्रांसीसी उपनिवेश था, इसलिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारिओं के लिए इस गेट के भीतर की जगह पूर्णतया सुरक्षित थी । अलीपुर बम मामले के मुख्य आरोपी अरविंद घोष और अन्य क्रांतिकारियों ने इसी चंदन नगर में शरण ली थी।क्रांतिकारी कानाईलाल दत्त यहीं के निवासी थे जो 1908 में फ़्रांसीसी शासन के विरुद्ध संघर्ष में शहीद हुये थे । इन्ही के नाम से उच्च शिक्षा संस्थान डूप्ले कॉलेज का नामकरण बाद में कानाईलाल विद्या मंदिर कर दिया गया था ।
जी टी रोड पर ही स्थित है नृत्यगोपाल स्मृति मंदिर की भव्य इमारत ।जहां पर एक पुस्तकालय और थिएटर हॉल है । 1920 में इसकी स्थापना हरिहर सेठ ने अपने पिता नृत्यगोपाल के नाम से की थी और इसका लोकार्पण सुरेंद्र नाथ बनर्जी के करकमलों द्वारा किया गया था ।भीतर प्रवेश करते ही फ़्रांसीसी वास्तुकला की पहचान लिए एक फुब्बारा और देवदूत की सुंदर मूर्ति है । पुस्तकालय में बांग्ला, फ़्रांसीसी और अंग्रेज़ी भाषा में पुस्तकों का विशाल संग्रह है ।जर्जर अवस्था की ओर जा रहा इस भवन ने सौ साल पूरा कर लिया हैं ।पर दुःखद स्थिति यह कि इस ऐतिहासिक भवन और रंगमंच का प्रशासन द्वारा संरक्षण नहीं किया जा रहा है । टोटोवाला भी इस बात पर दुःखी था ।
हमने चंदन नगर को शिक्षा , संस्कृति , संगीत , कला और विविध सांस्कृतिक गतिविधियों एवं सरगर्मियों से पूर्ण एक जीवंत शहर के रूप में पाया । यहाँ साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम निरंतर चलते रहते हैं ।इसकी स्मृति अनेक प्रसिद्ध व्यक्तित्वों से जुड़ी हुयी है ।
यहाँ क्रांतिकारी रासबिहारी बोस का पैत्रिक आवास है । बांग्ला समाचार पत्र दैनिक वसुमती के संस्थापक उपेन्द्र नाथ बनर्जी और पुर्तगाल मूल के बांग्ला भाषा के लोककवि ऐन्थॉनी फिरिंगी के निवास स्थान होने का गौरव भी चंदन नगर को प्राप्त है ।
जहां पूरा बंगाल प्रसिद्ध है दुर्गा पूजा के लिए वहीं चंदन नगर की प्रसिद्धि है जगद्धात्री पूजा के लिए । देवी दुर्गा का ही एक रूप देवी जगद्धात्री त्रिनयनी और चतुर्भुजी होती हैं ।चार हाथों में शंख , चक्र , धनुष और वाण धारण करती है ।देवी की सजावट की विशेषता होती है शोला ( बाँस के भीतर का गुदा ) से बनाए हुये गहने ।बांग्ला कैलेंडर के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को यह पूजा होती है और संयोग वश हमलोग इन्ही दिनों चंदन नगर में थे । लोग दूर दूर से यहाँ की जगद्धात्री पूजा देखने आते हैं । हमने यहाँ पर बागबाज़ार की पूजा में शामिल होकर पूजा का पूरा आनंद उठाया ।
चंदन नगर मंदिरों का शहर भी है । यहाँ का सबसे पुराना मंदिर है नंद दुलाल मंदिर जिसकी स्थापना पुर्तगालियों के यहाँ आने से पहले ही की जा चुकी थी । मंदिर के दीवाल पर सुंदर चित्रकारी है । भीतर स्थापित श्री कृष्ण का विग्रह मनोहारी और प्राचीन है । इस पुरातन मंदिर का संरक्षण भलीभाँति किया गया है । बौ बाज़ार का विशालक्ष्मी मंदिर भी जनप्रिय है । यहाँ अनेक काली और शिव मंदिर भी है । सभी मंदिरों की छतें झोपड़ीनुमा है जो बंगाल की वास्तुशिल्प की विशेषता है । गंगातट पर युवाओं के विचरने का आनंद और वृद्धों के लिए मंदिरों की बहुलता के कारण चंदन नगर को प्रायः ' युवाओं का वृंदावन और वृद्धों का काशी ' भी कहा जाता है ।
- जयश्री पुरवार (हिंदी लेखक)
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