कुछ कसैला-सा (लघुकथा)
"कोई बात नहीं, काहे चेहरा लटका रखा है, अभी दो टेम की गैस तो है सिलिंडर में।
कुछ कसैला-सा (लघुकथा)
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"री निम्मो! गैस सिलिंडर भरवाने के लिए रखे पैसों में तो पच्चीस रुपये कम पड़ रहे हैं।" घर में इधर-उधर से खोजबीन के बाद बटोरे गए रुपये गिनकर मायूस से स्वर में सत्तू ने पत्नी को बताया।
"कोई बात नहीं। मैं कम्मो से पच्चीस रुपये ले आऊँगी। दो महीने पहले उसने सिलिंडर भरवा था तो उसके पास भी कम पड़ गए थे।"
सत्तू का चेहरा खिल गया, "अरे वाह! यह भी सही सध जाएगी, सिलिंडर के लिए दिया पैसा वापसी में सिलिंडर के ही काम आएगा। इस बिपदा के समय मोदी जी राशन तो मुफ्त दे-दे रहे हैं अउर सिलिंडर भरवाने में कम पड़े पच्चीस रुपए कम्मो के यहाँ से आ जायेंगे।"
सत्तू की यह बात सुनकर निम्मो ठहाका मारकर हँसी, सत्तू ने भी साथ दिया, लेकिन दोनों के ठहाके में वो बात नहीं थी जो पहले कभी हुआ करती थी। उस टाइम तो दोनों दिहाड़ी-मजूरी करके ठीक-ठाक गुजारा कर रहे थे। लेकिन अब तो जहाँ देखो कटौती करनी पड़ रही थी जिंदा रहने को।
हँसी-ठठा खत्म हुआ तो निम्मो, कम्मो से अपने पहले से दिए हुए पच्चीस रुपए माँग लायी।
"ये लो, बेचारी कम्मो ने भी इधर-उधर से बटोरकर दिए हैं। जाओ सिलिंडर की पर्ची कटवा लाओ।"
सत्तू ने रुपये पकड़े सिलिंडर के लिए पहले से रखे रुपये और गैस की कॉपी गंजी की जेब मे डाली और निकल गया पर्ची कटवाने।
काफी देर बाद मायूस चेहरा और ढीले कदमों से घर में प्रवेश किया। निम्मो ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए सवाल किया, "कटवा लाए पर्ची?"
"री कहाँ कटी पर्ची, जब तक उनके दफ्तर पहुँचा खिड़की बंद हो गयी थी, मिन्नतें भी की पर बोले आज का टाइम पूरा हो गया है। कल सुबह आना, सबसे पहले कटवा लेना।"
"कोई बात नहीं, काहे चेहरा लटका रखा है, अभी दो टेम की गैस तो है सिलिंडर में। सुबह जल्दी उठके टेम से कटवा लाना पर्ची।"
अगले रोज सुबह-सुबह निम्मो और सत्तू चाय पीते-पीते टीवी में खबरें सुर्खियों में देख रहे थे। सुर्खियां थी - 'दूध दो रुपए महँगा, रसोई गैस से दाम पच्चीस रुपये बढ़े।'
सुनते ही दोनों की निगाहें मिली, मोदी जी द्वारा राशन में मिली मुफ़्त की चीनी से बनी चाय से मुँह कुछ कसैला-सा हुआ जा रहा था।
© विजय 'विभोर'
रोहतक।