तलवार जी- दो..

हमारी एक और स्टोरी पर वे फिल्म भी बना रहे थे। कैमरा टीम पहुंचाकर हमारा लंबा इंटरव्यू करवाया था। यह मामला था किसी पत्रकार का पहली बार फांसी होते देखने और उसकी रिपोर्टिंग का..

Update: 2021-09-17 13:44 GMT


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कई बातें हैं,सब बताना तो संभव नहीं। मगर कुछ लिखी जाना चाहिए। हमारे यहां हिन्दी में बाद में कौन पढ़ता है और कौन किसे याद रखता है!

तलवार जी खुद अपना नाम ईश मधु तलवार बताते हुए कहते थे, ईश फार आल, मधु फार फ्रेंड एंड तलवार फार एनिमी। पहले की दो सही हैं मगर तीसरी खुद को बहलाने वाली। दुश्मन (विरोधी) कभी सख्त नहीं रहे। गुस्सा आता था। रिएक्ट करते थे। मगर अंदर से भोले थे तो मनाने या समझाने से मान जाते थे।

पहली घटना अपनी बताते हैं। करीब 35 साल पुरानी बात है। RFWJ ( राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ) के चुनाव में हम और तलवार जी अलग अलग ग्रुपों में थे। हम भी जीत गए और हमारा ग्रुप भी। जीत का जश्न शुरु हो गया।देर शाम गिनती पूरी हुई थी। तलवार जी गुस्से में सीधे आफिस पहुंचे। चुनाव पर एक बड़ी खबर लिख दी। सुबह हंगामा। उनका गुस्सा भी उतर चुका था। मान गए कि गुस्से में कर बैठे। मामला शांत हो गया।

दूसरा वाकया अभी दो एक साल पहले का बताते हैं। प्रगतिशील लेखक संघ के व्ह्ट्स एप ग्रुप में किसी मुद्दे पर तलवार जी का किसी से विवाद हो गया। व्ह्टट्स एप ग्रुप इस मामले में बहुत खराब चीज है। बहस तेजी से तल्ख होने लगती है। तलवार जी ने गुस्से में ग्रुप छोड़ दिया। हमने बहुत कहा आफिशियल ग्रुप है। कार्यकारी अध्यक्ष अली जावेद इसके निर्माता और एडमिन थे। मगर तलवार जी फिर वापस ग्रुप में आए ही नहीं।

जयपुुर के प्रेस क्लब के अध्यक्ष रहे। वहां अच्छे काम किए। मगर इन दिनों वे पत्रकारिता से ज्यादा साहित्य में रमते जा रहे थे।

उनकी हेंडराइटिंग बहुत अच्छी थी। मोतियों की तरह। लिखते तो खैर बहुत अच्छा थे ही। हमारी एक रिपोर्ट का हैडिंग लगाया था। अक्सर उसे याद करते थे। अभी उस पर लिखा भी था।

" लाल किले से चला मुसाफिर ताक रहा दिवराला को" अग्निवेश के न रहने पर। स्वामी अग्निवेश ने 1986-87 में दिवराला सती कांड के विरोध में लाल किले से दिवराला तक की पैदल यात्रा निकाली थी। हमने इसे कवर किया था। कई दिन पैदल चले। रास्ते से बस वालों, दूसरे जयपुर या दिल्ली जाने वाले वाहनों के जरिए खबर पहुंचाते थे। यह खबर दिवराला, जिला सीकर के नजदीक पहुंचकर वहां घुसने नहीं देने की थी।

हमारी एक और स्टोरी पर वे फिल्म भी बना रहे थे। कैमरा टीम पहुंचाकर हमारा लंबा इंटरव्यू करवाया था। यह मामला था किसी पत्रकार का पहली बार फांसी होते देखने और उसकी रिपोर्टिंग का। जयपुर सेन्ट्रल जेल में हमने करीब 34- 35 साल पहले सीरियल किलर अवधूत का फांसी से पहले इंटरव्यू किया और फिर फांसी होते देखकर आंखों देखा हाल लिखा। उस पर वे हमें उलाहने दे देकर कि तुम किताब नहीं लिख रहे हो, खुद लिखने लगे थे। अभी फोन करके उस समय जेल सुपरिडेंटेट रहे चेतन उपाध्याय जी से बात करवाई थी।

जयपुर जो भी दोस्त पहुंचता था। तलवार जी का फोन आ जाता था। अक्सर शाम को। ले यार बात कर। नाम नहीं बताते थे। जयपुर जाने वाले लेखक, पत्रकार की शाम के मेजबान अक्सर तलवार जी ही होते थे। ग्रेट होस्ट थे।

- शकील अख्तर

( फेसबुक वॉल से )

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