Two worlds parallel India and Bharat : दो दुनिया समानांतर...इण्डिया और भारत-
Astha Nanda Pathak: मैं लखनऊ की एक अफसर कॉलोनी में रहता हूँ।मेरे घर से 150 मीटर दूर रेल लाइन गुजरती है और उसके पार कुछ अस्थायी टूटे फूटे निर्माण में गरीब और डेली मजदूर लोग रहते हैं जिन्हें हम झुग्गी या स्लम बोलते हैं...ये दोनों मोहल्ले सिर्फ 150 मीटर दूर होकर भी एक दूसरे से धरती और चन्द्रमा से भी ज्यादा दूरी पर हैं....
अफसर कॉलोनी यानी इण्डिया में एक अलग चमक-दमक है, बड़े बड़े बँगले, बड़े बड़े लॉन, फूल पत्ती,विशाल गेट, बल्ब की रोशनी में चमकता हुआ अफसर का नेमप्लेट, कैंपस में विदेशी नस्ल का एक बड़ा कुत्ता,. लेकिन अधिकतर लोग (सभी नहीं) एक दूसरे से ज्यादा बात नहीं करते, चेहरे पर स्थायी तनाव, चाल में एक अजीब सी थकान और मुस्कुराने में धीरे धीरे असफल हो रहे लोग...
कभी कभी तो दो चार महीने तक यही नहीं पता चल पाता कि आपके सामने वाले बँगले में रहता कौन है। एक दूसरे से मिलने पर सबसे पहले यह जानने की कोशिश रहती है कि आप किस बैच के अधिकारी हैं, ताकि यह तय हो सके कि आपको 'आप' बोलना है या 'तुम'...आपके सामने 'झुकना' है या आपको 'झुकाना' है...अफसर तो अफसर, उनकी पत्नियों या पतियों में भी यही व्यवहार देखने को मिलता है....हर बात में बेहद कृत्रिमता, हर बात बहुत प्रोफेशनल...सो कॉल्ड सॉफिस्टिकेटेड..
रेलवे लाइन के उस पार एक अलग दुनिया है जिसको मैं भारत कहता हूँ.. वहाँ एक पूड़ी सब्जी की दुकान पर अक्सर मैं जाता हूँ और दस रुपए की एक प्लेट पूड़ी सब्जी के साथ रोड के डिवाइडर पर बैठ जाता हूँ, भारत को देखने और उसको जीने के लिए...अगल बगल भारत की गरीबी रेखा के आस पास वाले ही लोग होते हैं...रिक्शेवाले, ठेले पर सब्जी बेचने वाले, मोची, बीडी सिगरेट की दुकान, साईकल के मिस्त्री...
वहाँ पर अभी भी 90 के दशक के ही गाने सुनने को मिलते है "धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है, हद से गुजर जाना है" "तू प्यार है किसी और का तुझे चाहता कोई और है" या फिर "टिप टिप बरसा पानी पानी मे आग लगाए" "परदेशी परदेशी जाना नहीं" या फिर भरत शर्मा का "दबे पाँव अइह नजरिया बचा के"...यहाँ अभी तक 2020 के बिना सिर पैर, बिना संगीत वाले कानफोड़ू गीत अभी तक नहीं पहुँचे हैं।
यहाँ देश विदेश के हर विषय पर चर्चा सुनने को मिल जाती है। जैसे एक व्यक्ति ने कहा-
"जोगी जी अब अगली बार में भारत के प्रधानमंत्री बन जायेंगे" तो तुरन्त दूसरा व्यक्ति उसकी बात काटता है कि "अब जोगी नाहीं, केजरीवाल बनेगा देश का मुखिया..."
तभी तीसरा व्यक्ति कहता है कि "अरे केहू प्रधानमंत्री तब न बनि जब देसवा बची, अब तीसरा विश्वयुद्ध शुरू बा, सब तहस नहस होई जाई"....और इतनी गंभीर बातें जम के ठहाके के साथ...आपके बगल में चौथा व्यक्ति अपने रिक्शे पर बैठा चुपचाप बीड़ी पी रहा है। वहाँ सब बराबर हैं, कोई जूनियर सीनियर बैच का नहीं है, कोई किसी की बात का समर्थन कर सकता है या उसकी बात को काट सकता है।
आप चुपचाप एक प्लेट पूड़ी सब्जी लेकर इन बातों का रस ले सकते हैं। मैं जानता हूं कि उस भारत मे रहने वाले लोगों की जिन्दगी बहुत कठिन है लेकिन संघर्ष की परिस्थितियों में भी हँसना और जीवट तो उनसे सीखा जा ही सकता है...
तेरे पास सब शोहरत होकर भी, तू बेनूर है
वो खाक में भी, हीरे की चमक रखता है
मैं इण्डिया में रहता हूँ लेकिन भारत देखने रोज रेल लाइन के पार चला जाता हूँ।