रंगनाथ सिंह
ऐसे लोगों की बात का बुरा न मानें। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने जन्म के बाद माता-पिता को मिल रही बधाइयों पर सवाल उठाने लगते हैं कि पैदा मैं हुआ हूँ लेकिन बधाई इन लोगों को क्यों दी जा रही है!
दुनिया के सारे इंटरनेशनल पुरस्कार अनुवाद के माध्यम से ही लिए-दिए जाते हैं। यह बात बताकर ऐसे बाल मन को धक्का पहुँचाना ठीक नहीं। यदि किसी बाल मन में यह धारणा घर कर के बैठी है कि सारे नोबेल विजेता साहित्यकार स्वीडिश भाषा में लिखते हैं, तो किसी को हक नहीं कि उनकी इस धारणा पर चूने का पानी डाले। हो सकता है कि नोबेल देने वाले स्वीडन में भी कुछ ऐसे बाल मन वाले साहित्य प्रेमी हों।
कायदे से होना तो यह चाहिए कि भारत और स्वीडन के ऐसे बाल मानस जन का कोई होली मिलन समारोह कराया जाए जिसमें वो आपस में इस बात पर सोच विचार सकें कि आखिर दुनिया के हर कोने में इतनी अच्छी स्वीडिश या इंग्लिश रचनाएँ करने वाले लेखक कैसे पैदा हो रहे हैं! लेकिन साहित्य के प्रति उदासीन सरकार से ऐसे रचनात्मक कार्यक्रमों की उम्मीद करना बेमानी है।
जब मैं पीएम बनूँगा तभी इस दिशा में कुछ हो पाएगा। पता नहीं तब तक ये बाल बाल ही रहेंगे या उनकी अक्ल की दाढ़ फूट चुकी होगी! मेरे पीएम बनने तक समय काटने के लिए सभी बाल मन कुछ अभ्यास प्रश्न पर विचार कर सकते हैं, जैसे शरतचन्द्र ने इतनी अच्छी हिन्दी लिखनी कैसे सीखी? गालिब जब नागरी लिपि इतनी अच्छी हिन्दी लिख लेते थे फिर उन्हें केवल उर्दू का शायर क्यों कहा जाता है? ईसामसीह ने इतनी अच्छी इंग्लिश में बाइबिल क्यों लिखी? वेदव्यास और वाल्मीकि की महाभारत और रामायण से जब हर हिन्दुस्तानी परिचित है फिर भी साल 2011 की जनगणना में केवल 24,821 भारतीयों ने क्यों कहा कि उनकी मातृभाषा संस्कृत है?
सभी साहित्य प्रेमी बालकों के अभिभावक चाहें तो अपने बालकन को व्यस्त रखने के लिए अपनी तरफ से भी ऐसे अभ्यास-प्रश्न बनाकर उन्हें हल करने को दे सकते हैं। कई अभिभावकों से सुन चुका हूँ कि दिनभर मोबाइल-लैपटाप करते रहने से बच्चे खराब हो रहे हैं। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार बच्चों को मनोरंजन के लिए रचनात्मक टास्क देने से उनमें रचनात्मकता का विकास होता है। जिन बच्चों में रचनात्मकता का विकास होता है, वही आगे जाकर स्वीडिश में लिखकर नोबेल जीत पाते हैं।
कामू के मम्मी-पापा ने उसे बचपन में अभ्यास के तौर पर ऐसा ही सवाल दिया था कि फ्रांसीसी बच्चे हिन्दुस्तानी बच्चों की तरह अपनी माँ को मम्मी और पिता को पापा क्यों कहते हैं? नतीजा आपके सामने है। कामू की इंग्लिश इतनी अच्छी हो गयी कि उसने नोबेल जीत लिया और काफ्का, तोल्सतोय, कबीर, तुलसी, मीर, गालिब, शरतचन्द्र जैसे हिन्दी लेखक देखते रह गए