कोविड के ताज़ा संक्रमण को लेकर केरल की स्वास्थ्यमंत्री ने इसी सप्ताह जो तथ्य पेश किए हैं वे ख़ासे चौंकाने वाले हैं। केके शैलजा का कहना है कि "बीते 4 माह में केरल में कोरोना संक्रमण के 8 लाख से अधिक मामले दर्ज़ हुए हैं।" बेशक कोविड संक्रमण के मामले में देश के किसी भी राज्य की तुलना में यह सबसे बड़ी और तेज़ रफ़्तार वाली संख्या है लेकिन इससे भी ज़्यादा ताज्जुब की बात यह है कि कोरोना मृत्यु दर के मामलों में केरल इतनी समयावधि में देश का सबसे कम आंकड़ों वाला राज्य बन कर उभरा है।
बीते 45 दिनों में 'एक्टिव केसों' के मामले में केरल में देश की कुल मरीज़ों का 30% भाग दर्ज़ हुआ है। 8 लाख संख्या वाला उसका आंकड़ा उसे देश के सर्वाधिक 'एक्टिव संख्या' वाले 5 राज्यों की सूची में सबसे ऊपर ला खड़ा करता है। जहाँ तक लेकिन मृत्यु दर का सवाल है, गुजरात, मप्र, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे 11 राज्यों की सूची में केरल सबसे निचली पायदान पर है। उनकी रणनीति महामारी के असर को 'एक स्थान पर एकदम बढने से रोकना' था। चूंकि वे उसे रोक पाने में क़ामयाब हुए इसलिए मृत्यु दर भी नियंत्रित बनी रही।
एक्टिव मामलों की तादाद के बढ़ने के पीछे भी 3 वजहें बड़ी साफ़-साफ़ रहीं। पहली, महामारी के दूसरे चरण में केरल में विदेश से आने वाले मलयालियों की सर्वाधिक घर वापसी। इनमें बड़ी तादाद संक्रमितों की थी। दूसरी वजह, अन्य राज्यों की तुलना में केरल के ग्रामीण क्षेत्रों का अधिकाधिक शहरीकरण होते चले जाना। अन्य राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों का आधिक्य होने से 'पॉज़िटिव' मामले प्रकाश में नहीं आ पाते। तीसरी वजह, जांच करने में दरियादिली बरतना। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के अपवादों को छोड़ कर जाँच में कंजूसी की यह शिक़ायत अन्य सभी क्षेत्रों में सुनाई पड़ती रही है। बीते रविवार को मृतकों का यह आंकड़ा 3327 था। सांख्यिकी की दृष्टि से यह औसत 0.41% था जो राष्ट्रीय औसत मृत्युदर से 3.5 गुना कम था। महाराष्ट्र का औसत 2.6 है जबकि दिल्ली 1.7 का औसत। सुश्री शैलजा के अनुसार उनके राज्य में दैनंदिन मरने वालों की संख्या कभी भी 35 से ऊपर नहीं रही जिनमें बहुसंख्य ऐसे बुज़ुर्ग थे जो एकाधिक गंभीर रोगों से ग्रस्त थे।
'केरल मॉडल' की शुरू से बड़ी चर्चा है। यह चर्चा देश में तो है ही, विदेशी भी इसके रहस्य को जानने के बेहद इच्छुक हैं। पढ़े-लिखे क़िस्म के राजनीतिज्ञ पूछताछ करते रहते हैं । वरिष्ठ अधिकारी भी केरल के अपने बैचमेट दोस्तों से बड़ी जिज्ञासा से इस मॉडल की बाबत जब-तब पूछते हैं। केरल के मंत्री और अफसर दोनों जवाब देते हैं-हमारे पास कोई रोल मॉडल तो था नहीं, हमने ख़ुद इसे करके सीखा है। ग़ौर करने वाली बात यह है कि मुख्य धारा मीडिया में इसका कोई विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता। 2020 फ़रवरी के पहले सप्ताह से लेकर आज तक मुख्यमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री, जनआपूर्ति मंत्री, वित्तमंत्री, चीफ़ सेक्रेटरी और अतिरिक्त मुख्य सचिव-स्वास्थ्य, नगर आवास एवं गृह आदि की दैनंदिन बैठक होती हैं और मीडिया के माध्यम से मुख्यमंत्री रोज़ राज्य के नागरिकों के समक्ष बीते 24 घंटों का रोज़नामचा और सलाह पेश करते। ज़रा सा संदेह होते ही बड़े पैमाने पर जांच का प्रबंध किया जाता है।
तब सवाल यह नहीं है कि केरल का वायरस अहिंसक क्यों है । सवाल यह है कि संक्रमितों की पहचान और मृत्युदर के नियंत्रण में सफलता प्राप्त कर चुकी केरल की इस रणनीति का अन्य राज्यों ने अज्ञानतावश अनुपालन नहीं किया या जान बूझकर?