आखिर मुस्लिम समाज में सैलेक्टिजम वाद क्यों है?
कुछ कट्टरपंथी जिन्होंने कभी मौलाना के संघ प्रेम पर उनसे सवाल नहीं किया, हमसे सवाल कर रहे हैं।
मुझे लगभग हर महीने यह लिखना पड़ता है कि फेसबुक के मुसलमान मित्र उस समय कूद कर दोस्ती करते हैं जब हम भागवत या पिंकी चौधरी के खिलाफ या मोब लिंचिंग या जातीय हिंसा पर विरोध करते हैं कार्यवाही करते हैं लेकिन जैसे ही किसी मौलाना की गलत बयानी पर बात करो उनका कट्टर मुसलमान कूद कर बाहर आ जाता है।
आरएसएस के करीबी और हर समय संघ का समर्थन करने वाले मौलाना अरशद मदनी ने लड़कियों की शिक्षा और लव जेहाद जैसी साजिश का बयान तब उछाल दिया जब दंगाई टीवी चैनल 15 दिनों से तालिबान की आड़ में देश के मुसलमानों को सवाल में खड़ा कर रहे हैं।
कुछ कट्टरपंथी जिन्होंने कभी मौलाना के संघ प्रेम पर उनसे सवाल नहीं किया, हमसे सवाल कर रहे हैं।
तर्क दे रहे हैं गांवों में लड़के लड़कियों के अलग स्कूल की मौजूदगी का। जनाब अधिकांश स्कूल अंग्रेजों ने तब शुरू किए जब बालिका शिक्षा का प्रचलन नहीं था। बाल विवाह की कुप्रथा थी, तब लड़कियां स्कूल आएं सो अलग गर्ल्स स्कूल खोले गए थे। यदि मर्द हो कर आपमें लड़कियों के प्रति इज्जत नहीं है, यदि आपके लिए लड़की अकेले सेक्स है तो आपका धर्म और शिक्षा लानत है।
शाहिद चौधरी आप को सेकुलरिज्म की परिभाषा पता नहीं है। आप संघ के समर्थक मदनी के भक्त हो जैसे संघी होते हैं। सवाल खड़े करने से पहले देश में एजुकेशन की हिस्ट्री और डेवलपमेंट को पढा होता।
काश मदनी से सवाल करते कि इस समय इस विषय पर सवाल खड़े करने की क्या फीस संघ से ली? आपके बस का नहीं आप जैसे लोग देश के मुस्लिम के दुश्मन है। और आपकी वाल पर आ कर आपके जैसे बौद्धिक स्तर के लोग जो गाली बक रहे हैं, आप उन्ही के लायक हो...