समाज ने ब्राह्मण क्यों बनाया था ये समाज भूल गया और ब्राह्मण आखिरकार ब्राह्मण क्यों है ये ब्राह्मण भूल गया, जानिए कैसे?

Update: 2021-09-10 04:20 GMT

संजय तिवारी विस्फोट 

ब्राह्मण ने समाज नहीं बनाया। समाज ने ब्राह्मण बनाया। भारत में किसी साजिश के तहत ये बात स्थापित की गयी है कि ब्राह्मणों ने अपने मुताबिक समाज बनाया और उसके शिखर पर जाकर बैठ गया। ये असत्य और अन्यायपूर्ण कथन है।

वास्तविकता ये है कि समाज ने ब्राह्मण बनाया। समाज ने एक संरचना विकसित की जिसमें धर्म को शिखर पर रखा। कला, विद्या और धर्म इन तीनों का सम्यक बंटवारा है भारतीय समाज। कला का अर्थ है हर प्रकार की कला। निर्माण, उद्योग और उत्पादन ये सब कला का अंग हैं। विद्या का अर्थ है परंपरा में संरक्षित ज्ञान।

कला और विद्या से युक्त समाज ने अपना एक शिखर बनाया जो धर्म का शिखर था। इस शिखर की सेवा और सुरक्षा का जिम्मा जिन्हें दिया गया वो ब्राह्मण थे। धर्म का अनुशासन न हो तो विद्या और कला व्यापार बन जाते हैं जो समाज का हित करने की बजाय समाज का शोषण करना शुरु कर देते हैं। समाज की संरचना विकसित करनेवाली पीढियां ये बात समझती थीं।

इसलिए समाज के रचनाकारों ने बहुत सूझबूझ से धर्म का दंड स्थापित किया था ताकि वो स्वयं पथभ्रष्ट न हो सकें। ये धर्म दंड समाज ने जिस समूह के हाथ में दिया वही ब्राह्मण हुए। लेकिन समाज ने सिर्फ धर्मदंड ही ब्राह्मण के हाथ में नहीं दिया। उसने ब्राह्मण के लिए सबसे कठोर अनुशासन तय किया। उसे अर्थोर्पाजन से पूरी तरह से दूर कर दिया। ये नियम तय किया कि ब्राह्मण अपने ज्ञान को कभी अर्थलाभ के लिए उपयोग नहीं करेगा। वह अपना ज्ञान मात्र समाज की भलाई के लिए ही प्रयोग करेगा।ब्राह्मणों को न्यूनतम वस्त्र, न्यूनतम भोजन और न्यूनतम आवासीय सुविधा प्रदान की गयी। उसका जीवन दरिद्र ही रहे इसकी समाज ने पूरी व्यवस्था की।

समाज ये जानता था कि ब्राह्मण का लोभी होना पूरे समाज के लिए घातक सिद्ध होगा इसलिए अपने अनुशासन के लिए ब्राह्मण को नियुक्त किया तो ब्राह्मण का अनुशासन अपने हाथ में रखा।

यह एक ऐसी उन्नत व्यवस्था है जिसे कोई भी समाज अपना लेगा तो शिरमौर हो जाएगा। लेकिन अभी भारत में ही यह व्यवस्था बहुत खंडित अवस्था में है।

ब्राह्मण जाति हो गयी है और अन्य जातियां ब्राह्मण जाति की विरोधी। दोनों भूल चुके हैं कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, प्रतियोगी नहीं। अधिकांश ब्राह्मणों में लोभ मोह आकंठ भर चुका है और उनके भीतर ऐसी चतुराई विकसित हो गयी है कि लोगों को धर्म के नाम पर ठगने में भी संकोच नहीं करते। उधर समाज में नये तरह के नियामक आ गये हैं जो समाज को नियंत्रित कर रहे हैं। सरकार, कानून, संविधान इत्यादि के निर्माण ने व्यक्तिवाद को बढावा दिया है और सामाजिकता को नष्ट करने के हर संभव प्रयास किये हैं। इसलिए भारत में क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इंद्रिय निग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध रूपी दस लक्षणों वाला धर्म पूजा पाठ और मंदिर माला तिलक पर आकर टिक गया है।

समाज ने ब्राह्मण क्यों बनाया था ये समाज भूल गया है। ब्राह्मण आखिरकार ब्राह्मण क्यों है ये ब्राह्मण भूल गया है। (संति)

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