अपने लाडले बेटे की शादी में मां क्यों नहीं देख पाती अपने बेटे के 7 फेरे, आइए जानते हैं सदियों पुराने बनाए गए इस नियम को

सदियों पुराने बनाए गए इस नियम को आज भी माना जाता है और उसका पालन किया जाता है।

Update: 2022-12-23 12:15 GMT

सनातन हिंदू धर्म में 4 महत्वपूर्ण संस्कार होते हैं, जिसमें से एक शादी भी होता है। शादी हिंदू धर्म के सबसे पवित्र रिवाज में से एक है। हिंदू धर्म में शादियों का बेहद खास महत्व होता है। शादी के दौरान कई रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जैसे कन्यादान, सात फेरे और गृह प्रवेश आदि। इन सभी रस्मों बेहद खास महत्व होता है। इन्ही रीति-रिवाजों को पूरा कर शादी सपंन्न मानी जाती है।

दो परिवारों का मिलन भी है शादी

शादियां केवल दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है। इसलिए सात जन्म के इस खास रिश्ते से कई प्रथाएं जुड़ी होती हैं। शादी में घर के सभी सदस्य शामिल होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि बेटे की शादी में मां शामिल नहीं होती है। अर्थात मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है? ऐसा करने के पीछे कारण क्या है।क्यों एक मां ही अपने बेटे की शादी में नहीं जाती है। एक मां के लिए अपने बेटे की शादी बेहद खास होती है। लेकिन फिर भी वह इस खास दिन का हिस्सा नहीं बन पाती है।

इस प्रथा की शुरुआत मुगलकाल से हुई

इस प्रथा की शुरुआत मुगल शासन के दौरान हुई थी। बता दें कि पहले के समय में मां अपने बेटे की शादी में जाती थी। लेकिन जब भारत में मुगलों का आगमन हुआ इसी के बाद से मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती हैं। मुगल शासन के दौरान जब महिलाएं बारात में जाती थी तो पीछे से कई बार डकैती और चोरी हो जाती थी। जिसके बाद से घर की रखवाली के लिए महिलाओं ने घर पर रहना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही शादी के दिन रात में सभी महिलाएं मिलकर मनोरंजन के लिए गीत गाती थीं।

घर की देखभाल करती थी

बता दें कि बेटे की शादी में मां का शामिल न होने का कारण घर की देखभाल करना होता था। क्योंकि घर के सभी लोग शादी में चले जाते थे। पीछे से घर की देखभाल और मेहमानों की जरूरतों का ध्यान रखने के लिए मां घर पर ही रूक जाती थी।

रस्म रिवाज होते हैं निभाने

शादी संपन्न होने के बाद जब दुल्हन सुबह अपने ससुराल पहुंचती है तो गृह प्रवेश किया जाता है। इस दौरान दुल्हन की पूजा की जाती है और कलश में द्वार पर चावल रखे जाते हैं। इस कलश को दुल्हन सीधे पैर से गिराती है। इसके बाद दुल्हनों के हाथ पर हल्दी या आलता लगाया जाता है। जिसके बाद दीवार पर हाथ के थापे लगाए जाते हैं। इसी रस्म को गृह प्रवेश कहा जाता है। इसी रस्म की तैयारी करने के लिए मां घर पर ही रूक जाती है

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