जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ। 

पंडित भवानी प्रसाद मिश्र नई कविता के सशक्त प्रयोगशील कवि रहे हैं। इनकी रचनाओं में ताजगी भरी अंदाज है...

Update: 2021-06-27 06:06 GMT

पंडित भवानी प्रसाद मिश्र नई कविता के सशक्त प्रयोगशील कवि रहे हैं। इनकी रचनाओं में ताजगी भरी अंदाज है...तथा रचनाएं गांधीवादी दर्शन से ओतप्रोत हैं इनके लेखन का मुख्य गुण चिंतनशील होना है। खास बात यह है इन्होंने जो समाज में जिन बातों को उपेक्षित पाया है उनका तर्क पूर्ण चित्रण किया है। आज समाज में ऐसे अनेकों व्यक्ति हैं ,जो अपनी प्रतिभा को व्यवसाय में बदलने के लिए शर्माते हैं उन्हीं के लिए मिश्रा जी ने गीत-फ़रोश में अपने संदर्भ में लिखा है -

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ। 

मैं तरह-तरह के 

गीत बेचता हूँ;

मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत 

बेचता हूँ। 

जी, माल देखिए दाम बताऊँगा, 

बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;

कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने, 

कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;

यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा; 

यह गीत पिया को पास बुलायेगा। 

जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को 

पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को;

जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान। 

जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान। 

मैं सोच-समझकर आखिर 

अपने गीत बेचता हूँ;

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ। 

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