डर के पीछे जीत है: आप जमातियों को कोसिये, चीन की चाल पर चिल्लाइये, पाकिस्तान को पापी बताते रहिए लेकिन बचिए इस बीमारी से!

आज कुछ नहीं कहूंगा, बस कुछ सच्ची घटनाएं जस की तस आपको सुना दूंगा।

Update: 2020-06-09 08:51 GMT

संजय सिन्हा 

सुनाने को मैं आज भी कोई कहानी सुना ही सकता हूं। लेकिन आज मैं कहानी नहीं सुना रहा, ग्राउंड ज़ीरो से आपको वो रिपोर्ट सुनाने जा रहा हूं, जिसके बारे में आपको जानना ज़रूरी है। नहीं तो आप टीवी पर चल रही रिपोर्ट में उलझे रह जाएंगे और भारत-चीन के बीच की तनातनी, जमातियों के षडयंत्र और अमेरिका में चल रहे अश्वेत आंदोलन जैसी ख़बरों में फंसे रहेंगे। मुमकिन है बीच-बीच में आप पाकिस्तान की दुष्टता की ख़बरें भी पढ़ और सुन लें और इस सोच में डूबे रह जाएं कि देश कितने मुश्किल दौर से गुज़र रहा है।

मुझे आपको चीनी चाल, जमाती ज़्यादती और पाक के पाप की कहानियों के बीच उस सच को दिखलाना है, जिसे देखना ज़रूरी है। सच कहूं तो बिना किसी को कोसे हुए संजय सिन्हा सिर्फ आपको वो ज़मीनी सच्चाई दिखलाना चाहते हैं, जिसके बारे में जान कर आपके लिए डरना ज़रूरी हो जाएगा। असल में संजय सिन्हा आज आपको डरना ही चाहते हैं ताकि आप समझ पाएं कि इस वक्त सचमुच डर के पीछे जीत है।

आज कुछ नहीं कहूंगा, बस कुछ सच्ची घटनाएं जस की तस आपको सुना दूंगा।

1. मेरे एक मित्र हैं। पिछले ढाई महीनों से वो लगातार कोरोना वारियर बने बैठे थे। न जाने कितने भूखों के पास वो भोजन लेकर गए, न जाने कितने मरीजों को उन्होंने अस्पताल पहुंचाया। मैंने उन्हें कई बार टोका कि अपना बहुत ख्याल रखिएगा। उन्होंने हर बार कहा कि वो अपना बहुत ख्याल रख रहे हैं। न जाने कितनी बार उन्होंने कोरोना के मरीजों के लिए तालियां बजवाईं और कितने लाख लोगों को खाना खिलवाया। न जाने कितने लोगों तक गाड़ियां पहुंचाईं और कितने लोगों का जीवन बचाया।

पर मेरे मित्र को आठ दिन पहले बुखार हुआ। मामूली बुखार। उन्होंने सरकारी डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने कहा कि आप कोरोना टेस्ट करा लीजिए। मेरे मित्र ने कोरोना टेस्ट करा लिया। अगले दिन रिपोर्ट आई तो पता चला कि कोरोनावायरस शरीर से चिपक गया है। अब मची अफरा-तफरी। उन्होंने सबसे पहले डॉक्टर से अनुरोध किया कि उन्हें कहीं भर्ती किया जाए। डॉक्टर ने कहा कि अभी तो अस्पताल में एक भी बेड नहीं है। आप घर पर ही एक कमरे में खुद को बंद कर लीजिए। गरम पानी पीजिए। दो दिन में आप ठीक होने लगेंगे।

मेरे मित्र दो दिन कमरे में बंद रहे। तीन दिन बंद रहे। आठ दिन बंद रहे। हल्दी वाला दूध पीते रहे। काढ़ा पीते रहे। गिलोय खाते रहे। बुखार की दवाएं खाते रहे। घर वालों से बिल्कुल नहीं मिले।

यही नहीं क्योंकि वो घर में थे तो उन्होंने सरकारी डॉक्टर से ये भी कहा कि उनके परिवार वालों का टेस्ट तो करा दीजिए। पर ये कह कर टेस्ट से भी मना कर दिया गया कि अभी बहुत मारामारी चल रही है। जब लक्षण दिखें तब कराएंगे।

आठ दिन में मेरे दोस्त का बुखार नहीं उतरा। खांसी बढ़ती गई। पता चला कि किसी सरकारी अस्पताल या प्राइवेट अस्पताल में कहीं रूम नहीं। बहुत अधिक ज़ोर लगाने पर उन्हें एक अस्पताल में किसी तरह भर्ती कराया गया।

भर्ती भी कैसे? वो खुद घर से निकले। अपना बैग लेकर वो अस्पताल पहुंचे। संजय सिन्हा फोन पर बात करते रहे, वहां तक नहीं जा पाए। पूरा परिवार दूर से उन्हें जाता देखता रहा, कोई न कुछ कह पाया, न पूछ पाया।

मैंने न जाने कितने मरीज़ों का इलाज़ कराया है। दिल्ली के एम्स से लेकर अपोलो तक में। पर कल कोई किसी की नहीं सुन रहा था।

भगवान करे कि वो जल्दी ठीक हो जाएं। मैं उनसे मिल पाऊं।

इस बीमारी का दोष क्या है? यही कि एक बार हो जाए तो फिर कोई किसी से नहीं मिल पाता। मैं तड़प कर रह गया, पर वहां तक जा नहीं पाया।

2. मेरी बहन ने फोन किया कि उसकी बहू के मामा की कल आगरा में किडनी फेल होने से मृत्यु हो गई।

क्या हुआ?

हुआ ये कि वो पिछले दो साल से डायलसिस पर थे। किडनी काम नहीं करती थी। हर महीने डायलसिस कराते थे। कल जब अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल वालों ने ये कह कर लौटा दिया कि अब सिवाय कोरोना के मरीज़ों के यहां कुछ नहीं होता। डॉक्टर किसी को नहीं देखते। और मामा जी का निधन हो गया।

उनकी मौत कोरोना की मौत में नहीं आएगी।

3. मेरे एक सहयोगी की पत्नी के एक मामा, एक मौसा और एक भाभी की मृत्यु उज्जैन में यूं ही हो गई। मरने के बाद पोस्टपार्टम में पता चला कि मौसी को कोरोना हुआ था। मामाजी को कोरोना हुआ था। भाभी का दिल यूं ही बंद हो गया था। भाभी की मौत कोरोना में नहीं गिनी जाएगी।

4. कल देर रात उन्हीं सहयोगी का फोन आया कि मध्य प्रदेश के देवास में उनके चाचा को अचानक सांस लेने में दिक्कत आई और फिर दिल का चलना बंद हो गया। अस्पताल ले जाया गया पर वहां भी कोरोना की भीड़ थी। चाचा जी मर गए। वो कोरोना मौत में नहीं गिने गए हैं।

ये सारी घटनाएं मैंने आपको सिर्फ इसलिए सुनाई हैं ताकि आप डरें। आप समझें कि आज जो डरेगा वही कल के लिए बचेगा। आप जमातियों को कोसते रहिए, चीन की चाल पर चिल्लाते रहिए, पाकिस्तान को पापी बताते रहिए लेकिन ये बीमारी आज किसी को हो गई तो मैं सच कह रहा हूं कोई आपको देखने नहीं आने वाला। मुझे आपके शहर का पता नहीं पर मेरे शहर के अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। डॉक्टर लाचार नज़र आने वाले हैं।

मैं रोज़ कह रहा हूं, रोज़ अलर्ट कर रहा हूं। आप अपना बहुत ख्याल रखें। चाहे पूरी दुनिया खुल रही हो, आप जितना संभव हो खुद को बंद रखें। अधिक उत्साहीलाल मत बनिए। संजय सिन्हा हस्तिनापुर के हाल देख रहे हैं। वो सिर्फ हाल देख कर उसकी कहानियां ही सुना सकते हैं, कुछ कर नहीं सकते। करना तो उसे ही है जो सुन रहा है।

कम कह रहा हूं अधिक समझने की आस लगाए बैठा हूं। बाकी जैसी ईश्वर की मर्ज़ी।

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