पायलट ने पूरी तरह भट्टी बुझा दी गहलोत की, घमासान अभी दो साल और जारी रहेगा
सचिन पायलट ने सार्वजनिक रूप से एक गीत गाकर जाहिर कर दिया है कि वे राजस्थान में रहकर ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की छाती पर मूंग दलते रहेंगे । राजस्थान से बाहर जाने का उनका कोई इरादा नही है । अर्थात 2024 तक प्रदेश में दोनों के बीच जंग जारी रहेगी । इसका सीधा नुकसान मरणासन्न कांग्रेस को होगा ।
गहलोत खेमा यह उम्मीद लगाए बैठा था कि पायलट को संगठन में जिम्मेदारी दिलाकर उन्हें राजस्थान से बाहर बेदखल कर दिया जाएगा ताकि गहलोत स्वच्छंद होकर राज कर सके । लेकिन पायलट ने गहलोत के सभी मंसूबो पर यह गाना गाकर "जीना यहां, मरना यहां । इसके सिवा जाना कहाँ" पानी फेर दिया । एक सार्वजनिक समारोह में इस गाने के माध्यम के जरिये अपनी इच्छा का इजहार कर दिया ।
हकीकत यह है कि आज राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत की "नकारा और निकम्मे" सचिन पायलट के सामने पूरी तरह भट्टी बुझ चुकी है । पायलट की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता में दिन प्रतिदिन इजाफा होता जा रहा है जबकि किराए से बुलाने पर गहलोत की सभा मे भीड़ एकत्रित नही हो पा रही है । लगता है 24 आते आते गहलोत का राजनीतिक दीया पूरी तरह बुझ जाएगा । यह कल्पना नही, भविष्य का अक्स है ।
माना कि अशोक गहलोत राजनीति के बहुत बड़े जादूगर थे । लेकिन अब पायलट के मामले में अब वे लगातार मात खा रहे है । साल भर पहले पायलट की दुकान पूरी तरह लुट चुकी थी । लेकिन गहलोत ने उसी लुटी दुकान को अपनी नासमझी की वजह से आबाद कर दिया है । गहलोत के कारण ही पायलट देश भर में हीरों की मानिंद छाए हुए है । फिल्मी हीरों की तरह समूचे देश मे बिना "प्रायोजित कार्यक्रम" के उनका जगह- जगह जोरदार स्वागत हो रहा है । लोग केवल इनकी एक झलक पाने के लिए बावले है ।
आपातकाल के बाद जब देश मे जनता पार्टी की सरकार थी, उस वक्त स्व इंदिरा गांधी गुमनाम जिंदगी व्यतीत करने को विवश थी । चरणसिंह तथा मोरारजी देसाई आदि ने मुकदमे दर्ज कर इंदिरा गांधी को हीरोइन बना दिया । नतीजतन वे फिर से प्रधानमंत्री पद पर काबिज़ होगई । कमोबेश यही हाल सचिन पायलट का है । उनकी जितनी अनदेखी की गई, पायलट उतने बड़े हीरो साबित हो रहे है । बकौल एक खुफिया एजेंसी अफसर के-मोदी के बाद सबसे ज्यादा भीड़ जुटाने की क्षमता पायलट में है ।
राजस्थान और देश के विभिन्न हिस्सों में पायलट का जो स्वागत हो रहा है, वह अभूतपूर्व है । इनके काफिले में सैकड़ो की तादाद में वाहन होते है । सड़क के किनारे हाथ मे माला लिए असंख्य लोग उनकी झलक पाने को बेताब रहते है । अगर स्थिति को अभी से नियंत्रण में नही लिया गया तो यह "नकारा" और "निकम्मा" व्यक्ति गहलोत को हुक्का गुड़गुड़ाने के लायक भी नही छोड़ेगा ।
राजनीतिक नियुक्तियों में अनावश्यक देरी कर पायलट को गहलोत बेवजह हीरों बनाने पर तुले हुए है । पायलट के पास जो कुछ भी लुटाने के लिए था, वह पहले ही लुट चुका है । इसलिए अब वे अनुशासन के दायरे में रहते हुए दौरे के नाम पर अशोक गहलोत की नींद उड़ाने में सक्रिय है । वे उन विधायकों के घर पर भी जा रहे है जो गहलोत के कट्टर समर्थक माने जाते है । राजगढ़ विधायक जौहरी लाल मीणा न तो बहुत बड़े नेता है और न ही उनकी पायलट से नजदीकियां है । मीणा की पत्नी के निधन पर मातमपुरसी की आड़ में पायलट ने अपना जलवा दिखा दिया । इसी प्रकार गहलोत के घर मे जाकर पायलट अपनी ताकत से रूबरू करवा रहे है ।
पहले वे केवल गुर्जरों के ही नेता माने जाते थे । लेकिन अब वे मालियों सहित सभी कौम के नेता बन गए है । गहलोत मंत्रिमंडल के आधे से ज्यादा मंत्री और विधायक चोरी छिपे अक्सर पायलट से मिलते रहते है । ज्यादातर लोगों का मानना है कि 2024 में कमान गहलोत नही, पायलट के हाथ मे रहेगी । इसलिए इनके इर्द-गिर्द जबरदस्त भीड़ रहती है । विधायकों के मिलने का नम्बर कई दिनों बाद आता है । जबकि गहलोत सुबह से ही विधायकों की इंतजार में बैठे रहते है ।
गहलोत को अंततः राजनितीक नियुक्तियां भी करनी ही होगी । विधायक चाहे किसी भी खेमे के हो, उनका सब्र जवाब देने लगा है । निर्दलीय और बसपा के विधायक भी अब संसदीय सचिव तथा राजनीतिक पद हासिल करने के लिए मुखर हो रहे है । फिलहाल संसदीय सचिव की नियुक्तियों का मामला कानूनी पचड़े में फंस चुका है । ऐसे में वे 15 विधायक जो संसदीय सचिव बनने की आस लगाए बैठे थे, घर बैठकर मूंगफली सेंक रहे है । यही हाल फोकट के रायचंदो का है ।
कई विधायक बनने चले थे मंत्री और उनको थमा दिया "सलाहकार" का झुनझुना । और किसी को नही तो कम से कम डॉ जितेंद्र सिंह को तो शर्म आनी चाहिए थी । इतने वरिष्ठ होने के बाद भी मिला क्या ? बाबाजी का ठुल्लू । इससे इनकी इज्जत में बेहद गिरावट आई है । इनकी हालत ऐसी होगई जैसे किसी को बनना था प्रिंसिपल और बना दिया चपरासी ।