गहलोत सरकार की इस गलती के चलते पायलट हुए आग बबूला!
आईपीसी की धारा 124 ए का नोटिस जारी करना गहलोत की सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल
राजस्थान में जब सब कुछ ठीक चल रहा था तो यकायक एसा क्या हुआ जो सचिन पायलट ने बागी रुख अख्तियार कर लिया है. फिलहाल इस बागी रुख की उन्हें कीमत जरुर चुकानी पड़ेगी. इससे पहले सचिन पायलट ने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा वोट दिलवाकर पार्टी के वफादार कार्यकर्ता की तरह काम किया और यकायक पार्टी के विरोध में जाकर खड़े हो गये समझ में नहीं आया.
राष्ट्रद्रोह का नोटिस भेजने से आगबबूला हुए पायलट
जिस धारा को हटाने के सम्बंध में कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था, आईपीसी की उसी धारा 124 ए के अंतर्गत गहलोत सरकार को गिराने की साजिश रचने वालो के खिलाफ एसओजी ने प्रकरण (47/2020) दर्ज किया है ।
इसके अलावा धारा 120 बी यानी षड्यंत्र में लिप्त भी जोड़ी गई है ।
एसओजी ने भले ही धारा 124 ए के अंतर्गत प्रकरण दर्ज कर लिया हो, लेकिन जिस तरह का यह प्रकरण है उसमें यह धारा किसी भी हालत में नही जोड़ी जा सकती है । कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए इस धारा को बहुत ही खतरनाक और राजनैतिक बदला लेने वाली धारा की संज्ञा दी थी । स्वयं राहुल गांधी ने कहा था कि केन्द्र में उनकी सत्ता आने पर सर्वप्रथम इस धारा को समाप्त करेंगे ।
सचिन पायलट की नाराजगी का मुख्य कारण एसओजी द्वारा नोटिस जारी करना भी है । इसके अलावा जिन धाराओं में यह प्रकरण दर्ज किया गया है, वह भी आपत्तिजनक है । क्योंकि 124 ए धारा का मतलब है राष्ट्रद्रोह करना तथा 120 बी का ताल्लुक अपराध के लिए षड्यंत्र को जन्म देना । जाहिर है कि एसओजी बगैर सीएम या गृह मंत्री की इजाजत के बिना यह नोटिस कभी नही भेज सकता है । देखा जाए तो इसी नोटिस के बाद से ही राजस्थान की सियासत में भूचाल आया है । आलाकमान ने भी इस नोटिस को बचकाना हरकत मानते हुए अपना आक्रोश जाहिर किया है । गहलोत के लिए यह नोटिस काफी महंगा साबित हो सकता है । यूं दिखावे के तौर पर गहलोत ने खुद को भी नोटिस जारी करवाया है ।
आइये आपको बताता हूँ कि आईपीसी की धारा 124 ए की असलियत -
आईपीसी की धारा 124 ए कहती है कि यदि कोई भी व्यक्ति भारत की सरकार के विरोध में सार्वजनिक रूप से ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम देता है जिससे देश के सामने सुरक्षा का संकट पैदा हो सकता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है । इन गतिविधियों का समर्थन करने या प्रचार-प्रसार करने पर भी किसी को देशद्रोह का आरोपी मान लिया जाएगा ।
साथ ही यदि कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है । इन गतिविधियों में लेख लिखना, पोस्टर बनाना, कार्टून बनाना जैसे काम भी शामिल होते हैं । इस कानून के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर दोषी को 3 साल से लेकर अधिकमत उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।
क्या है इस कानून का इतिहास
अंग्रेजी हुकूमत ने 135 साल पहले इसे आईपीसी में शामिल किया था। 19वीं और 20वीं सदी के प्रारम्भ में इसका इस्तेमाल ज्यादातर प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के लेखन और भाषणों के खिलाफ किया गया था। हालांकि 1962 में आया सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला धारा 124 ए के दायरे को लेकर कई बातें साफ कर चुका है, लेकिन तब भी इस धारा को लेकर अंग्रेजों वाली जमाने की रीत का पालन ही किया जा रहा है।
माना जाता है कि अंग्रेजो के वक्त आईपीसी में देशद्रोह की सजा को शामिल करने का मकसद ही सरकार के खिलाफ बोलने वालों को सबक सिखाना था। 1870 में वजूद में आई यह धारा सबसे पहले तब चर्चा का विषय बनी जब 1908 में बाल गंगाधर तिलक को अपने एक लेख के लिए इसके तहत छह साल की सजा सुनाई गई।
तिलक ने अपने समाचार पत्र केसरी में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था- देश का दुर्भाग्य । सन 1922 में अंग्रेजी सरकार ने महात्मा गांधी को भी धारा 124 ए के तहत देशद्रोह का आरोपी बनाया था। उनका अपराध यह था कि उन्होंने अंग्रेजी राज के विरोध में एक अखबार में तीन लेख लिखे थे। तब गांधी जी ने भी इस धारा की आलोचना करते हुए इसे भारतीयों का दमन करने के लिए बनाई गई धारा कहा था।