पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुढा का बिगड़ गया अलाइनमेंट
Former minister Rajendra Gudha's alignment deteriorated
जिस लाल डायरी की वजह से सियासत गरमाई हुई थी, क्या वास्तव में उसका कोई वजूद है ? यदि वजूद है तो राजेन्द्र गुढा इस डायरी को लेकर खमोश क्यो है ? आरोप लगाना और उन्हें सिद्ध करना दोनो अलग बात है । यदि कथित लाल डायरी में राजनीतिक रहस्य छिपे हुए है तो गुढा ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डायरी के पन्ने पत्रकारों को सार्वजनिक क्यो नही किया ?
मान लिया कि विधानसभा अध्यक्ष ने गुढा को सदन में पेश करने की इजाजत नही दी । लेकिन प्रेस को वितरित करने के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नही होती । पार्टी से बर्खास्त और सदन से निलंबित होने के बाद गुढा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यो नही की ? गुढा को समझना चाहिए कि तथ्य और कथ्य में बहुत अंतर होता है । उन्होंने मुख्यमंत्री सहित कई लोगो पर आरोप लगाए । लेकिन उनको प्रमाणित करने के लिए डायरी में दर्ज तथ्य प्रेस को उपलब्ध क्यो नही कराए, यह बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है । प्रेस के सवालों का माकूल जवाब देने के वे सभी प्रश्नों को यह कहकर टाल गए कि मौका आने पर डायरी को उद्घाटित करूँगा ।
गुढा बहुत ही घाघ राजनीतिज्ञ माने जाते है । यह हो नही सकता कि उन्होंने कथित डायरी की फोटोस्टेट नही करवाई होगी ? अगरचे डायरी का कोई वजूद होता या वह बहुत ही विस्फोटक होती तो गुढा निश्चित रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये उसे सार्वजनिक अवश्य करते । सबसे अहम सवाल यह है कि यदि वे धर्मेंद्र राठौड़ के घर से अपनी जान पर खेलकर डायरी लाए होते तो इतने दिनों से वे खामोश क्यो थे ? गुढा आयकर वालो से डायरी छीन लाते तो क्या आयकर वाले चुप बैठे रहते ? अगर आयकर वालो से जबरन डायरी छीनी होती तो आईटी वाले निश्चित रूप से एफआईआर दर्ज करवाते ।
दरअसल गुढा को इस बात का गुमान था कि गहलोत की सरकार उन्होंने ही बचाई है । एक हद तक यह बात सही भी है । लेकिन जब उनको मंत्री के नाम पर सैनिक कल्याण जैसा बेकार सा महकमा थमा दिया तो उनका अलाइनमेंट बिगड़ गया । उनको पूरी उम्मीद थी कि उन्हें केबिनेट स्तर का मंत्री अवश्य बनाया जाएगा और साथ मे मिलेगा महत्वपूर्ण महकमा । वे सरकार बचाने की कीमत मांगने लगे । लेकिन जब ऐसा नही हुआ तो उनको बगावत की उल्टियां होने लगी ।
गुढा ने कई बार सरकार और मंत्रियों के बारे में उलजुलूल बयान देकर जबरदस्त पार्टी की किरकिरी कराई । कभी कहा कि धारीवाल का अलाइनमेंट बिगड़ गया है तो कभी बयान दिया कि सरकार के कार्यो को देखते हुए फॉर्चुयन में बैठने जितने विधायक भी निर्वाचित होकर नही आएंगे । जिस धारीवाल का उन्होंने खराब अलाइनमेंट बताया था, आज उसी धारीवाल ने उनको सदन से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
गुढा को उम्मीद थी कि उनके पक्ष में बसपा के विधायक और सचिन पायलट अवश्य बोलेंगे । लेकिन सबको अब सांप सूंघ गया है । विधायको को समझ आ गया है कि दिल्ली एक्शन मोड पर है । किसी ने उलजुलूल बयान दिया तो टिकट गई भाड़ में, उसे पहले ही निपटा दिया जाएगा । आज जिस तरह गुढा रोते हुए दिखाई दिए, उससे जाहिर होगया कि वे केवल गरजने वाले शेर है । कल तक वे दहाड़ते दिखाई दे रहे थे, मगर आज उनके सभी पेच ढीले होगये।
लाल डायरी का कोई वजूद है या नही, मुकम्मल तौर पर नही कहा जा सकता । लेकिन इस डायरी ने बीजेपी को एक पुख्ता मुद्दा अवश्य थमा दिया है । चुनाव में इसका कितना असर होगा, फिलहाल कुछ कहना बेमानी होगा । क्योंकि जिस तरह कांग्रेस में सिर फुटव्वल की स्थिति है, उससे कहीं ज्यादा बीजेजी मारधाड़ मची हुई है । कांग्रेस दो भागों में बंटी हुई है तो बीजेपी में एक दर्जन से ज्यादा गुट सक्रिय है ।