महेश झालानी
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट के बीच अंदर ही अंदर खिचड़ी पक रही है । आप नेता संजय सिंह और पायलट की तीन बार आपस मे राजस्थान को लेकर लम्बी बातचीत हो चुकी है । बातचीत का निचोड़ 15 मई तक दिखाई दे सकता है ।
आजकल सभी की निगाह इस बात पर लगी हुई है कि पायलट का अगला कदम क्या होगा । क्या वे कांग्रेस में रहकर ही मूंग दलते रहेंगे या किसी और का दामन थामेंगे । यह स्पस्ट हो चुका है कि बीजेपी में नही जाएंगे । अगर वे बीजेपी में जाते है तो उनकी कांग्रेस से भी बदतर स्थिति होगी । वहां सीएम की रेस में पहले से ही गजेंद्र सिंह, अर्जुन मेघवाल, दीया कुमारी, राजेन्द्र राठौड़, सतीश पूनिया, राज्यवर्द्धन सिंह, ओम बिड़ला और भूपेंद्र यादव लगे हुए है । पायलट को सीएम से कम पद स्वीकार नही है । इसलिए वे भाजपा में जाएंगे, ऐसी संभावना नजर नही आती है ।
हालांकि पायलट कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे है । लेकिन इन दिनों इनकी पार्टी में कोई दाल गल नही रही है । पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा उनसे उपेक्षित व्यवहार किया जा रहा है तथा उनके किसी भी सुझाव को कोई अहमियत नही दी जा रही है । इससे वे बेहद कुंठित है । उधर कुर्सी बचने से अशोक गहलोत उत्साहित है । उन्होंने पुनः आलाकमान का भरोसा हासिल कर लिया है । पार्टी में उनका सम्मान पहले ज्यादा बढ़ गया है ।
पायलट की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे करे तो करे क्या ? उनके सारे दांव उल्टे पड़ रहे है । राजस्थान में दौर करने की प्रक्रिया भी कोई असरकारी साबित नही हुई । पार्टी में उनसे उपेक्षित जैसा व्यवहार किया जा रहा है और आलाकमान उनसे खफा है । दिल्ली में गहलोत का ही सिक्का चल रहा है । स्टार पूरी तरह फेवर नही कर रहे है । नतीजतन उनको खुद नही सूझ रहा है कि वे किस दिशा में जाए । समर्थको की संख्या में भी निरन्तर कमी आती जा रही है ।
उधर विनय मिश्रा को आप द्वारा राजस्थान का प्रभारी बनाने के बाद पार्टी का पूरी तरह बंटाधार होगया है । सारी गतिविधियां थम चुकी है और कार्यकर्ताओं में नेता एवं पार्टी के प्रति जबरदस्त आक्रोश है । ज्ञात हुआ है कि केजरीवाल ने मृत पड़ी पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए संजय सिंह से मदद मांगी है । जब संजय सिंह राजस्थान के प्रभारी थे तब आप पार्टी उफान पर थी । लेकिन आज आप की हालत बेहद खस्ता है । विनय मिश्रा पूरी तरह फ्लॉप साबित हुए ।
केजरीवाल को पायलट से कोई गुरेज नही है । लेकिन डर है कि कहीं पायलट पूरी पार्टी को ही हजम नही कर जाए । यही मुख्य कारण है जिसकी वजह से दोनों के बीच इलू इलू नही हुआ । वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस अंदर इज्जत का फलूदा कराने से बेहतर है कि पायलट आप का हाथ थाम ले । परिस्थिति का भी यही तकाजा है । एक कहावत है कि " तू काणो, मैं खोड़ो, राम मिलाये जोड़ो । पायलट को आप की और आप को पायलट की जरूरत है । दोनो का गठजोड़ बहुत बड़ा गुल खिला सकता है ।
आरएलपी के हनुमान बेनीवाल का प्रस्ताव अच्छा है । लेकिन जो जंग आज पायलट की गहलोत से चल रही है, वही जंग बेनीवाल के साथ दिखाई देना सुनिश्चित है । दूर दूर तक नजरें घूमने के बाद भी कोई उचित मार्ग दिखाई नही दे रहा है । पायलट को चाहिए कि जब तक स्टार फेवर में नही होते, तब तक खमोश रहकर कांग्रेस में ही रहे । गहलोत से सुलह करने के अलावा उनके पास वर्तमान में कोई बेहतर विकल्प नही है । इससे इनके समर्थको का भी भविष्य सुधर जाएगा । वरना........?