क्या सांसदों में ही छूपा है मुख्यमंत्री का चेहरा?

भाजपा की पहली सूची ने चौंकाया, क्या सांसदों में ही छुपा है सीएम का चेहरा! सूची में गुट बाजी को रखा दूर! कांग्रेस की पहली सूची 15 को ? 23 को चुनाव कराना भी बना चर्चाओं में! विकास के टपके आंसू, बैंसला का विरोध

Update: 2023-10-10 10:25 GMT

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के लगभग लगभग साथ ही भाजपा ने राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 41 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर न केवल सबको चौंका दिया बल्कि भारतीय जनता पार्टी में गुट बाजी को प्रोत्साहन नहीं दिए जाने का भी संकेत दे दिया। पहली सूची में सात वर्तमान सांसदों को विधानसभा के चुनाव में उतारकर शायद यह संकेत भी यू देने की कोशिश की है की मुख्यमंत्री अब कोई बड़ा नेता नहीं होगा या खुलकर कहा जाए तो गुटबाजी से जुड़े नेताओं को तो वजह नहीं मिलने का भी संकेत दिया है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि किसी के समर्थन को वरीयता नहीं दी जाएगी बल्कि जो कमल के साथ रहेगा वह ही सत्ता के साथ भी रहेगा। चौकाने वाली बात तो यह है कि भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दो निकट सहयोगियों को प्रत्याशी नहीं बनाया जाकर उनके स्थान पर दो सांसदों को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया दिया कुमारी और राजवर्धन सिंह को उनके क्षेत्र में प्रत्याशी बनाया गया है जिससे जातिगत समीकरण को भी बरकरार रखा गया है।

पहली सूची जारी होने के बाद में कोई खुलकर विरोध सामने नहीं आया है हालांकि किशनगढ़ से पूर्व में प्रत्याशी रहे भाजपा के विकास चौधरी को प्रत्याशी घोषित नहीं किया जाने से वह खुद समर्थक और उनके काफी दुखी है। विकास चौधरी ने तो ट्वीट कर निराश भी जाहिर की है वही आज उन्होंने रो रो कर अपने समर्थकों के सामने अपनी पीड़ा व्यक्ति की लेकिन खुलकर उन्होंने कोई विरोध जैसी बात नहीं कही। वहीं देवली-उनियारा से विजय बैंसला को प्रत्याशी बनाने का जबरदस्त विरोध हो रहा है। दूसरी तरफ खुद वसुंधरा राजे ने भी सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया व्यक्ति नहीं की है बल्कि इसके विपरीत एक्स पर ट्वीट कर घोषित किए गए प्रत्याशियों को शुभकामनाएं प्रेषित की है। वसुंधरा राजे ने पोस्ट किया, 'भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव-2023 के लिए 41 प्रत्याशियों के नामों पर अपनी स्वीकृति प्रदान की है।मैं आप सभी को विजय के लिए शुभकामनाएं देती हूं। जानकारों के अनुसार घोषित की गई कल जारी सूची में 19 ऐसी सीटें हैं जिन पर भाजपा कभी जीत हासिल नहीं कर पाई. वहीं, बाकियों पर पिछले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। जिन सांसदो को विधानसभा मैदान में उतर गया है उन में सांसद दीया कुमारी, किरोड़ीलाल मीणा, भागीरथ चौधरी, बालकनाथ,नरेंद्र कुमार, राज्यवर्धन सिंह राठौर देव जी पटेल शामिल है। चर्चा है की चित्तौड़ सांसद सीपी जोशी को भी सीपी जोशी को भी अगली सूची में प्रत्याशी घोषित किया जा सकता है।

इस सूची को अगर देखा जाए तो राजनीतिक मायना यह भी निकलता है कि वसुंधरा राजे के विरोधी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल जिनको लेकर भी पहले चर्चा थी कि विधायक का चुनाव लड़ाया जाएगा उनका नाम नहीं आने से शायद वसुंधरा राजे को कुछ हद तक नाराज होने से रोकने की कोशिश की गई है। पहली सूची से ही यह भी स्पष्ट होने लग गया है कि संभावित सांसद से विधायक बनने वाले किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता ने का रास्ता खुल गया है। मोटे तौर पर अगर देखा जाए तो भाजपा के बहुमत पर आने पर राजपूत अथवा ब्राह्मण नेता को मुख्यमंत्री के रूप में आगे लाया जा सकता है। फिलहाल यह सब कुछ पहले सूची को लेकर राजनीतिक गहमा गहमी से जुड़ी चर्चाएं कही जा सकती है।

मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि केंद्रीय नेतृत्व में बखूबी से गुटबाजी को समाप्त करने का भी प्रयास किया गया है वहीं यह भी संदेश दिया गया है की कोई भी नेता पार्टी से बड़ा नहीं है। भाजपा की सूची जारी होने के बाद कांग्रेस में भी खलबली मची हुई है अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 2 दिन दिल्ली रहने के बाद सोनिया गांधी सहित कुछ नेताओं से मुलाकात कर आज राजस्थान लौट रहे हैं लेकिन 12 और 13 अक्टूबर को कांग्रेस की सीईसी की बैठक आहुत की गई है। ऐसे में यदि बैठक होती है तो पहली सूची 15 अक्टूबर नवरात्र के दिन जारी हो सकती है। अब बात करते हैं 23 नवंबर को राजस्थान में मतदान की तो इसको लेकर आम मतदाताओं में इस बात की चर्चा है कि 23 नवंबर का दिन देवउठनी एकादशी के साथ-साथ 5 दिनों तक आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मिले की शुरुआत वाला दिन भी है इस दौरान जहां बिना मुहूर्त के हजारों शादियां होती है वही लाखों की तादाद में लोग पुष्कर में 5 दिनों में उसके स्थान के लिए आते हैं ऐसे में कई मतदाता चाह कर भी मतदान में भाग नहीं ले सकते। अब 23 नवंबर को चुनाव की तिथि में हालांकि परिवर्तन होना बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी देखने वाली बात ही होगी कि स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करने वाला चुनाव आयोग क्या राजस्थान के लोगों की मंशा पर भी कुछ विचार करेगा!

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