राहुल को आने दो, सारे घर के बदल देंगे
Let Rahul come, he will change all the houses
सचिन पायलट ने केंद्रीय आलाकमान को स्पस्ट कर दिया है कि वे राजस्थान से विस्थापित नही होना चाहते है । जहां तक पद की बात है, इसकी उन्हें कोई लालसा नही है । वे कांग्रेस के सच्चे सिपाही थे और भविष्य में भी रहेंगे । भले ही उन्हें कोई पद नही मिले, कांग्रेस को जिताने के लिए वे जी तोड़ मेहनत करेंगे । उनकी भावना का सम्मान करते हुए राहुल निश्चय ही इन्हें कोई सम्मानजनक पद सौपेगी । यह पद क्या होगा, कुछ स्पस्ट नही है । लेकिन यह तय है कि सचिन के कद में इजाफा होने की पूरी संभावना है ।
राहुल गांधी ने उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए स्पस्ट तौर पर कहाकि आप कांग्रेस के नायाब मोती हो और पार्टी आपको किसी भी हालत में खोना नही चाहती है । सूत्र बताते है कि उन्होंने सब नेताओ का आकलन कर लिया है कि कौन अवसरवादी और सत्तालोलुप है और कौन ऐसा नेता है जो पार्टी के प्रति समर्पित है । राहुल गांधी ने पायलट को भरोसा दिलाया है कि उनके साथ किसी तरह का ना तो अन्याय होगा और न ही कोई देरी होगी ।
राहुल दिल्ली लौट आए है । उम्मीद जताई जा रही है कि पार्टी संगठन में व्यापक बदलाव हो सकता है तथा कई प्रभारियों की छुट्टी भी हो सकती है । राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि के प्रभारियों को इधर-उधर किये जाने की संभावना है । चर्चा है कि राजस्थान की जिम्मेदारी के साथ साथ पायलट को महाराष्ट्र का प्रभारी या मीडिया महासचिव की जिम्मेदारी दी जा सकती है । कांग्रेस में इस वक्त पायलट से बेहतर और कुशल प्रवक्ता नही है । समसामयिक विषयो पर उनकी गहरी पैठ के अलावा हाजिर जवाब भी है । पायलट इस पद को स्वीकार करेंगे, इसकी उम्मीद कतई नही है ।
सूत्र कहते है कि राजस्थान का मामला काफी लंबा खिंच गया है जिससे पार्टी को काफी क्षति उठानी पड़ रही है । पार्टी को उम्मीद है कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है । दोनो बाहुबली अशोक गहलोत और सचिन पायलट की मारकाट को रोका नही गया तो राजस्थान कांग्रेस के हाथ से फिसल भी सकता है । माना कि गहलोत काफी मेहनत कर रहे है और उनकी योजनाओ में भी कोई मीनमेख नही निकाल सकता है । ऐसे में दोनों बाहुबली हाथ मिलाकर चुनाव लड़े तो बीजेपी का बाजा बजना सुनिश्चित है ।
उम्मीद की जा रही है कि राहुल के आने के बाद राजस्थान का ऐसा फैसला होगा जिसमें गहलोत की स्वीकृति हो । बिना गहलोत की रजामंदी के कोई भी सुलह का फार्मूला कामयाब नही हो सकता । पहले भी हाथ मिले थे । एक बार फिर हाथ मिल जाएंगे । लेकिन फायदा क्या ? अंदर आग तो आज भी सुलग रही है । पिछली 29 तारीख को जो फार्मूला बताया गया था, उससे न तो गहलोत राजी है और न ही पायलट । इसलिए नए सिरे से नई पटकथा लिखी जा रही है ।
बात अब पद की नही है, पायलट के आत्मसम्मान की है । पायलट पहले ही स्पस्ट कर चुके थे कि पिछली सरकार के भ्रस्टाचार के खिलाफ गहलोत और उन्होंने मुद्दे उठाए थे, उसकी जांच कराई जानी आवश्यक है । अन्यथा जनता में इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा । सचिन ने राहुल को स्पस्ट कर दिया कि वसुंधरा के घोटालो से गुरेज क्यो ? बताया जाता है कि राहुल भी इस पक्ष में है कि जिन मुद्दों को पार्टी ने औजार बनाकर सता पर काबिज हुई, उसकी जांच कराए जाने से पार्टी की साख में इजाफा होगा ।
पता चला है कि इन घोटालो की प्रशासनिक, लोकायुक्त अथवा किसी रिटायर्ड जज से जांच कराने के आदेश जारी कर इस प्रकरण को अन्य केस की तरह ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है । बीएल सोनी जैसे अधिकारी जांच के लिए उतावले बैठे है । जहां तक सचिन की आरपीएससी के पुनर्गठन की मांग है, राज्य सरकार सभी सदस्यों से इस्तीफा मांगकर इसका पुनर्गठन कर सकती है । यदि कोई सदस्य इस्तीफा देने से इनकार करता है तो आयोग का एक्ट समाप्त कर नया कानून बनाया जा सकता है । सचिन की तीसरी मांग के लिए वे शिथिल पड़ सकते है ।
यह भी ज्ञात हुआ है कि सचिन ने डिप्टी सीएम और पीसीसी चीफ के तत्काल निष्कासन का मुद्दा भी राहुल गांधी और खड़गे के सामने उठाया है । उनका तर्क था कि मेरे मम्मले में जिस ततपरता का परिचय दिया, वह ततपरता शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ के मम्मले में क्यो नही दिखाई । इन तीनो ने किसी के इशारे पर कांग्रेस के इतिहास में पहली दफा आलाकमान के आदेश और निर्देश की सार्वजनिक फजीहत की । पार्टी ऐसे अनुशासनहीन और आलाकमान को चुनोती देने वालो के प्रति खामोश क्यो है ? क्या पार्टी ने इन्हें माफ कर दिया है ? नही तो फिर कार्रवाई में लुकाछिपी क्यो ?
पूरी उम्मीद है कि राहुल के दिल्ली लौटने के बाद निश्चय ही कोई बड़ा बदलाव होगा । इस बदलाव में किसी का कद घट सकता है तो किसी का बढ़ने की संभावना है । चर्चा अनेक तरह की है । कोई कहता है कि सचिन या उनके किसी व्यक्ति को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है । हेमाराम के नाम पर किसी को आपत्ति नही है । हरीश चौधरी का डिप्टी सीएम के अलावा पीसीसी चीफ और गोविंद सिंह डोटासरा को डिप्टी सीएम बनाए जाने जबरदस्त चर्चा है । विधानसभा के स्पीकर रहे दीपेंद्र सिंह के कद में भी इजाफा होने की राजनीतिक गलियारों में सुगबुगाहट है ।
यह सब चर्चा और आकलन है । हो सकता है ऐसा कुछ भी नही हो । जब खड़गे और अजय माकन आलाकमान का फरमान लेकर आए, उस वक्त यह तय माना जा रहा था कि गहलोत तो ग्यो । लेकिन गहलोत ने जादू का ऐसा डंडा घुमाया कि खड़गे, माकन सहित आलाकमान भी लहूलुहान होगया । इसलिए राजनीति के बारे में कोई भविष्यवाणी नही करनी चाहिए । कम से कम कांग्रेस के बारे में । यह जिस वक्त शहनाई बजती है तब स्यापा मनाया जाता है और स्यापा मनाया जाता उस वक्त चियर्स होता है