गहलोत साहब, अगर अपराधी चेतावनी से ही मान जाए तो पुलिस की क्या जरूरत, चेतावनी नहीं कार्यवाही से होंगे अपराध कम!
राजस्थान में शांति बरकरार रखने के लिए सरकार को बजाय जुबानी चेतावनी के हिस्ट्रीशीटर बदमाशों की गिरफ्तारी के लिए विशेष अभियान चलाए जा कर उत्तर प्रदेश की तर्ज पर कार्रवाई की जाने की।
कुछ समय पहले तक अगर अपराध की सीमा पर बात की जाती थी या अपराध में कौन सा प्रदेश जाना जाता था, तो सब से पहले बिहार और उत्तर प्रदेश का नाम अग्रिम पंक्ति में सुनने को मिलता था। बिहार में तो लूट डकैती और हफ्ता वसूली और फिर फिरौती की घटना आम बात हो गई थीं। जहां जहां लगभग एक दशक पहले तक सूर्यास्त के बाद अक्सर ही लोग घरों से बाहर आया जाया करते थे लेकिन यह तो नहीं कहा जा सकता कि वहां अपराध पर पूर्ण रूप से विराम लग गया हो हां लेकिन इतना जरूर का जा सकता है कि मौर्या कॉम्प्लेक्स, फ्रेजर रोड और गांधी मैदान सहित डाक बंगला चौराहा से लोग आसानी से रात 10:11 बजे तक भी आते जाते हैं। हां इतना जरूर है कि बड़े अपराधियों पर जो दिन दहाड़े दुकानों में जाकर लूट पात की घटना करते थे उन पर कुछ तक विराम लगा है।
अगर बात करें उत्तर प्रदेश की तो वहां छोटे अपराधी काम बड़े-बड़े अपराध माफिया की संख्या ज्यादा थी इसके बारे में अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किस प्रकार से उनके नाक में नकेल डाल दी है। यह मैं क्या कहूं आम आदमी आए दिन समाचार पत्रों या टीवी न्यूज़ में देखा ही होगा। जहां बड़े बड़े क्राइम किंग का कुछ इलाकों मैं जबरदस्त खौफ था। आम लोग और अरबों पति और बड़े-बड़े उद्योगपति तो क्या पुलिस तक उनके नाम से कांपती थी। या यू कहे कि उन पर कार्रवाई करने से पहले उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा याद आ जाती थी।
ऐसे नामी गामी को नेश्ता नावूद कर अब इन का नामो निशान मिटा दिया। अपराधिक गतिविधियों से खड़े किए गए बड़े-बड़े बहु मंजिला भवन को गिरा दिया गया। हां इतना जरूर है कि ठीक है अगर योगी सरकार इन बहु मंजिला इमारत को बजाय तोड़ने के अगर जरूरतमंद लोगों को रहवास के लिए अलॉट कर देती। खेर यह बात तो छोड़ो, बात कर रहे थे राजस्थान की और पहुंच गए उत्तर प्रदेश और बिहार। लौटते है वापस जिस मुद्दे पर बात करनी है।
दरअसल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पुलिस से संबंधित बड़े अधिकारियों की एक रिव्यू बैठक ले रहे थे जिसमें उन्होंने पुलिस के माध्यम से राजस्थान में बढ़ रही अपराधी गतिविधियों के गुनहगारों को मामले में बजाय सीधा चेतावनी देने के रिव्यू बैठक में अपराध माफिया को चेतावनी दी कि या तो वे अपराध छोड़ें या फिर राजस्थान छोड़ें। लेकिन जिन अपराधियों को पुलिस का थोक नहीं है क्या वे जुबानी चेतावनी से अपनी गतिविधियों से बाज आ सकेंगे! राजस्थान में भी बिहार और यूपी की तर्ज पर लूटपाट, फिरौती और फायरिंग की घटनाएं आम बात होती जा रही है जिससे तो ऐसा लगता है कि अपराधी गतिविधियों में लिप्त तत्वों पर चेतावनी क्या असर करेगी!
हाल ही दौसा में अपराधी तत्वों का शिकार हुए एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई जिस पर मुख्यमंत्री जी ने अनुकम्पा नौकरी देने की बात वह तो वैसे भी शहीद हुए उसे पुलिसकर्मी का अधिकार बनता है हां जहां तक एक करोड रुपए की सहायता देने की घोषणा की उसे जरूर उचित ठहराया जा सकता है लेकिन इससे भी बढ़कर जरूरत है इन बेलगाम और बे अंकुश अपराधी तत्वों को अपराधी तत्वों को गिरफ्तार कर उन पर रासुका लगाया जाए। जो भी हो राजस्थान में शांति बरकरार रखने के लिए सरकार को बजाय जुबानी चेतावनी के हिस्ट्रीशीटर बदमाशों की गिरफ्तारी के लिए विशेष अभियान चलाए जा कर उत्तर प्रदेश की तर्ज पर कार्रवाई की जाने की।