राजस्थान सियासी जंग : धक्के पड़े तो बैरंग लौट आये विधायक, अब छिन सकते है कई मंत्रियों के विभाग
जब तक विधानसभा का सत्र सही सलामत नही निपट नही जाता, तब तक गहलोत इन बेवफाओ से दूरी बनाकर रखेंगे।
महेश झालानी
असतुष्टो की वापसी के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निकटतम मंत्री रघु शर्मा से चिकित्सा विभाग और प्रतापसिंह से परिवहन विभाग छिन सकता है। इसके अलावा कई अन्य मंत्रियो की बलि भी ली जा सकती है ।आलाकमान द्वारा किये गए समझौते के बाद गहलोत समर्थक कई और विधायकों को कुर्बानी देनी पड़ सकती है। कांग्रेस के साथ निर्दलीयों के सपने भी चकनाचूर हो सकते है।
यद्यपि कल पायलट के साथ हुए समझौते में किसी भी असन्तुष्ट विधायक को मंत्री या लाभ का पद देने की बात नही हुई है। लेकिन बाद में विश्वेन्द्र सिंह, रमेश मीणा, दीपेंद्र सिंह, वेदप्रकाश सोलंकी, गजेन्द्रसिंह शक्तावत तथा भंवरलाल शर्मा ने सचिन के सामने मंत्री पद की शर्त रखकर तनाव का माहौल उतपन्न कर दिया। जो विधायक आलाकमान के सामने दुम दबाकर बैठे थे, बाहर आकर मुखर होगये। उन्होंने मंत्री पद की सचिन से मांग की।
पता चला है कि रमेश मीणा परिवहन, दीपेंद्र सिंह शेखावत चिकित्सा, विश्वेन्द्र सिंह खाद्य तथा भंवर लाल शर्मा पीडब्लूडी विभाग की चाहत रखते है । जहाँ तक सचिन का सवाल है, उनकी नजर वित्त या गृह विभाग पर है। इन परिस्थितियों में गहलोत समर्थक विधायको के हितों पर आरी चलने की पूरी उम्मीद है। महेंद्र चौधरी, संयम लोढा, हरीश चौधरी के अलावा बीएसपी विधायको को भी मायूस होना पड़ सकता है।
तात्कालिक रूप से भले ही राजस्थान का सियासी संकट समाप्त होगया हो, लेकिन असली युद्ध की शुरुआत तो अभी बाकी है। आपस मे कपड़े फाड़ने की रस्म अदायगी तब शुरू होगी, जब कुछ विधायको से मंत्री पद छीनकर असंतुष्टों को मंत्री की कुर्सी पर बैठाया जाएगा। ऐसे में जो विधायक आज गहलोत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे है, समय आने पर ये गहलोत को आंख दिखाने से भी नही चूकेंगे। नतीजतन पार्टी में फिर से सिर फुटौवल।
होटल सूर्यगढ़ में आज इन्ही मुद्दों को लेकर विधायक दल की महत्वपूर्ण बैठक हो रही है। बैठक में इन सभी बिन्दुओ पर विस्तार से चर्चा होगी। संकट निवारण के लिए भले ही अशोक गहलोत ने भावावेश में कह दिया हो कि यदि आलाकमान असन्तुष्ट विधायकों को माफ करने के लिए राजी होता है तो वे इनको गले लगाने के लिए ततपर है। अब लगाओ गहलोत साहब इनको गले।
चूंकि असन्तुष्ट विधायको के पास समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नही बचा था। इसलिए ये विधायक दुम दबाकर भले ही मानेसर से भाग आये हो, लेकिन मौका आने पर ये फिर से अपनी पुरानी रंगत पर उतर सकते है। फिलहाल गहलोत को इन असंतुष्टों की वफादारी पर संदेह है। जब तक विधानसभा का सत्र सही सलामत नही निपट नही जाता, तब तक गहलोत इन बेवफाओ से दूरी बनाकर रखेंगे।
हकीकत यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की तर्ज पर सचिन पायलट अपने उन साथियो के साथ हरियाणा भाग तो गए। लेकिन पायलट की खाली दुकान को देखकर भाजपा ने दुत्कार भगा दिया तो इनके होश उड़ गए। कई बार भाजपा का दरवाजा खटखटाया गया, लेकिन हर समय अपमान के अलावा कुछ हाथ नही आया।
उधर भाजपा के उपेक्षित रवैये को देखते हुए पायलट खेमे की ओर से यही कहा गया कि वे बीजेपी में नही जा रहे है। जब बीजेपी में नही जा रहे थे तो मानेसर में क्या झक मार रहे थे। करीब एक माह तक तो बीजेपी के टूकड़े तोड़ते रहे। लेकिन जब बोझ साबित होने लगे तो जबरन होटल खाली करवाकर बीजेपी ने बैरंग लौटा दिया।
उधर बीजेपी की बेरुखी के बाद पायलट मानसिक रूप से बुरी तरह टूट गए। कोई स्पस्ट दिशा नही थी। इधर साथी विधायक कपड़े फाड़ने पर आमादा होने लगे। अंत मे केसी वेणुगोपाल की शरण मे पायलट को जाना पड़ा । केसी ने ऐसा चक्कर चलाया कि फौरी तौर पर समझौता होगया है।
अब तीन जनो की कमेटी बनेगी जो दोनों पक्षो को सुनेगी। अगर कमेटी ने थोड़ा सा भी पायलट के पक्ष में झुकाव रखा तो गहलोत का साथ देने वाले वफादार विधायक बगावत का रास्ता अख्तियार कर सकते है जो गहलोत सरकार के लिए अशुभकारी होगा। पायलट इनके साथी विधायकों की महत्वाकांक्षा और अपरिपक्वता की वजह से कांग्रेस पार्टी को अपूरणीय क्षति के साथ साथ प्रदेश की जनता को भी बेहद कष्ट भोगने पड़े है। इसके लिए पायलट और इनके साथियो को प्रायश्चित करना होगा वरना अगले चुनाव में जनता कांग्रेसियो को भाटे मारेगी।