असली आत्म सम्मान तो अब दिखाई देगा, वास्तव में यह इलू इलू है या .......?
दिखावे के तौर पर गहलोत व पायलट गले मिलने का स्वांग भर रहे है। लेकिन दोनों ने मन से एक दूसरे को आत्मसात नही किया है।
महेश झालानी
कांग्रेस ने एकजुटता का स्वांग रचते हुए सरकार ने विधानसभा में बहुमत तो हासिल कर लिया है। लेकिन आपसी एकता की परीक्षा की परख तब होगी जब तीन सदस्यीय कमेटी के सामने गहलोत और पायलट गुट अपने लिए पैरवी करेंगे। संभवतया 16 से 21 अगस्त के बीच कमेटी दोनों गुटों का पक्ष सुनेगी। एकता का असली चेहरा कमेटी के सामने उजागर हो सकता है जब दोनों गुटों में होगी आपसी तकरार।
ज्ञात हुआ है कि विधानसभा का सत्र 21 अगस्त तक इसलिए स्थगित किया ताकि इस बीच कांग्रेस की कमेटी दोनों पक्षों की फरियाद सुन सके। संभावना है कि कमेटी के समक्ष जबरदस्त घमासान हो सकता है। दोनों पक्षो की ओर से परस्पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाएंगे। साथ ही पायलट गुट की ओर से संगठन व सत्ता में भागीदारी की भी मांग किया जाना संभावित है। ऐसे में "भरत मिलाप" की असलियत सामने आ सकती है।
चूँकि 12 अगस्त से पहले गहलोत के दिनमान बहुत खराब चल रहे थे। अधिकांश राजनीतिक पंडितो की यही मान्यता थी कि गहलोत अब सरकार बचाने की स्थिति में नही है। उस विषम परिस्थितियों में भी मैंने दावा किया था कि गहलोत की सरकार को कोई खतरा नही है और पायलट के पास समझौते के अलावा नही है कोई विकल्प। यह बात सौ फीसदी सच साबित हुई। गहलोत को कई मोर्चो पर एक साथ संघर्ष करना पड़ रहा था। पायलट गुट् के साथ साथ बीजेपी, कोर्ट, केंद्र तथा राज्यपाल से भी लड़ाई लड़नी पड़ रही थी गहलोत को।
संकट के फौरी समाधान करने की गरज से गहलोत ने भावावेश में आकर कह तो दिया कि आलाकमान बागियों को माफ कर देते है तो वे इनको गले लगाने को ततपर है। अगरचे गहलोत को गले ही लगाना होता तो पायलट और उनके साथियों पर गंभीर आरोप लगाते ही क्यों ? पायलट को नकारा, निकम्मा गहलोत ने बताया था न कि बीजेपी ने । अब ये सब लोग गहलोत की मार्मिक अपील पर वापिस आगए है। देखते है कितने दिन इनको गले लगाया जाता है।
उधर जब पायलट की एक के बाद एक लगातार गाड़िया छूटती जा रही थी तो उनके पास घर वापसी के अलावा कोई विकल्प ही नही बचा था। जो कल तक किसी का फोन नही उठा रहा था, विधायकी जाने के खौफ और साथी विधायकों की बगावत के कारण उस की पायलट की तमाम हेकड़ी ढीली पड़ गई। वापसी के लिए हाथ पैर जबरदस्त तरीके से हाथ पैर मारने लगे। अंत मे आलाकमान और गहलोत के आगे उन्हें दंडवत प्रणाम करना पड़ा।
साथी विधायकों पर यह रुतबा झाड़ना भी जरूरी था कि आलाकमान उनकी सभी बात मानने के लिए सहमत है, इसलिए दिखावे के तौर पर पायलट ने विधायकों को आलाकमान के दर्शन करा दिए। आलाकमान ने चालाकी का परिचय देते हुए तीन सदस्यीय कमेटी के गठन की घोषणा कर पायलट गुट के आंसू पोछने का प्रयास किया है। यह कमेटी इनको कितने लड्डू बाँटती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
गहलोत और सचिन दोनों का आपसी स्वार्थ था, इसलिए दिखावे के तौर पर इलू इलू तो होगया है। लेकिन असली जंग तब देखने को मिलेगी जब कमेटी के सामने पायलट गुट की ओर से सत्ता और संगठन में भागीदारी मांगी जाएगी। उस वक्त गहलोत और उनके समर्थको द्वारा विरोध करना स्वाभाविक है। ऐसे में एक बार फिर से हो सकता है जोरदार घमासान।
दिखावे के तौर पर गहलोत व पायलट गले मिलने का स्वांग भर रहे है। लेकिन दोनों ने मन से एक दूसरे को आत्मसात नही किया है।
पायलट ने कल अपनी सीट को लेकर जिस तरह तंज कसा, वह उनकी मानसिकता का परिचायक है। पूर्व मुख्यमंत्री पायलट ने दो टूक शब्दों में कहाकि वे आजीवन प्रदेश की सेवा करते रहेंगे । उन्होंने कांग्रेस या पार्टी का नाम नही लेकर जाहिर कर दिया है कि वे मन से कांग्रेस के साथ नही जुड़े है।
पायलट तथा उसके सभी साथी विधायको ने अपने बयानों में कहाकि उन्हें किसी पद की लालसा नही है। जब उनको पद की लालसा ही नही है तो हरियाणा क्या वे भजिये तलने गए थे ? झूठ बोलना राजनेताओ का पेशा है। पायलट को इसमे महारथ हासिल है। अगरचे इन लोगों को पद की कोई लालसा नही है तो इन्हें कमेटी के समक्ष दो टूक शब्दों में कहना होगा कि उन्हें पद नही, आत्मसम्मान चाहिए। यदि पद ऑफर भी किये जाते है तो ये विनम्रता से पदों को अस्वीकार कर ईमानदारी का परिचय दे।
सभी को पता है कि ऐसा नही होगा। राजनीति में लोग भूंगड़े बेचने नही, कुर्सी के लिए आते है। जो व्यक्ति यह कहता है कि वह जनसेवा के लिए राजनीति में आया है, उससे बड़ा कोई पाखंडी कोई नही हो सकता है। अगर यही बात है तो वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएं स्वीकार क्यों ? पायलट गुट के जो लोग कुर्सी के प्रति उदासीनता दिखाने का पाखण्ड कर रहे है, कुर्सी नजदीक दिखाई देने पर ये पायलट को भी अंगूठा दिखाने से नही चूकेंगे। खुद पायलट का भी यही हाल होगा। देखते है सरहद के इन "योद्धाओ" की असलियत।