गहलोत पायलट में हुई सुलह लेकिन जंग जारी रहेगी!
फिलहाल गहलोत कुर्सी छोड़ने के मूड में नही
राजस्थान के दोनों नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच पिछले चार साल से चली आ रही जबरदस्त जंग के बीच कल दोंनो के बीच अस्थायी सुलह होगई है । यह सुलह पूरी तरह अस्थायी है । जैसे ही राहुल गांधी की राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा समाप्त होगी, फिर से जंग का नया एपिसोड प्रारम्भ हो जाएगा । क्योंकि जिस बात को लेकर दोनों के बीच मारकाट मची हुई है, उसके बारे में फिलहाल कोई फैसला नही हुआ है । मुकम्मल और सर्वग्राह्य फैसला नही होने तक लड़ाई जारी रहने की संभावनाओं से इनकार नही किया जा सकता है ।
जब दोनों नेताओ के बीच चरम पर लड़ाई चल रही थी, उस वक्त 27 नवम्बर को मैंने स्पस्ट रूप से लिखा था कि गहलोत और पायलट के बीच सुलह कराने के लिए संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल 29 नवम्बर को जयपुर आ रहे है । उस वक्त किसी को भी मेरी खबर पर इसलिए विश्वास नही हुआ क्योकि गहलोत ने बहुत ही तल्ख शब्दों में पायलट को नकारा, निकम्मा और गद्दार कहा था । ऐसे तल्ख और गर्म माहौल के बीच कोई व्यक्ति सुलह की कल्पना भी नही कर सकता था ।
आलाकमान के बहुत ही विश्वस्त सूत्रों ने जो मुझे बताया, उसी के अनुसार खबर परोसते हुए मैंने बिना लाग लपेट के लिखा था कि गहलोत और पायलट के बीच दोस्ती होगी । इस खबर पर मेरे कई मित्रो ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा था इसमे रत्तीभर भी सच्चाई नही है । क्योंकि दोनों के बीच बहुत ज्यादा तलवार खिंच चुकी है । ऐसे में दोनो के बीच सुलह होगी, केवल कल्पना की उड़ान है । गहलोत के बयान के बाद किसी ने भी यह नही लिखा था कि दोनों नेता सुलह कर हाथ मिलाएंगे । लेकिन मैंने जैसा लिखा, उसी के अनुरूप गहलोत और पायलट ने दोस्ती के स्वांग का अभिनय किया । अभिनय इसलिए कह रहा हूँ कि पहले की तरह हाथ मिले है, दिल नही ।
हकीकत यह है कि गहलोत द्वारा पायलट के खिलाफ जो बयान जारी हुआ, राहुल गांधी ने उसे बहुत ही गंभीरता से लिया । राहुल ने महसूस किया कि दोनों के बीच पैचअप नही कराया तो उनकी भारत जोड़ो यात्रा की मय्यत निकल जाएगी । दक्षिण राज्यों के अलावा महाराष्ट्र और एमपी में भी यात्रा को जबरदस्त रेस्पॉन्स मिला । राहुल नही चाहते कि दोनों नेताओं की आपसी कलह के चलते उनकी यात्रा की राजस्थान में हवा निकल जाए । लिहाजा उन्होंने कड़े संदेश के साथ वेणुगोपाल को जयपुर रवाना किया ।
राहुल ने जो कड़ा संदेश दिया, हूबहू उसे वेणुगोपाल ने दोनों नेताओं को अग्रेषित करते हुए चेतावनी दी कि यात्रा के दौरान कोई गड़बड़ या उल्टी-सीधी बयानबाजी हुई तो उस नेता की खैर नही है । भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की बागडोर मल्लिकार्जुन खड़गे ने संभाल ली हो । लेकिन असली पावर आज भी गांधी परिवार के पास है । यद्यपि 25 सितम्बर की घटना के बाद भले ही गांधी परिवार की किरकिरी हुई हो, लेकिन उसका पार्टी पर अभी भी दबदबा बरकरार है ।
राहुल गांधी के बारे में सभी कांग्रेसी जानते है कि वे एक जिद्दी और खडूस व्यक्ति है । एक मिनट में वे किसी को भी उसकी हैसियत बताने क्षमता रखते है । यहां तक कि मल्लिकार्जुन खड़गे भी राहुल के नाम से कांपते है । भले ही गहलोत ने अपने बगावती तेवर दिखाए हो, लेकिन वे राहुल के अड़ियल स्वभाव से बखूबी वाकिफ है । इसलिए जैसे ही वेणुगोपाल ने गहलोत और पायलट को राहुल का फरमान सुनाया, दोनो के पास सुलह करने के अलावा कोई विकल्प नही बचा ।
अब सवाल यह पैदा होता है कि राहुल की राजस्थान यात्रा समाप्त होने के बाद होगा क्या ? राहुल की यात्रा 3 दिसम्बर को राजस्थान में प्रवेश करेगी और करीब 15 दिन रहने के बाद 18 के आसपास समाप्त हो जाएगी । इस बीच राजस्थान के सम्बंध में कोई निर्णय होगा, बहुत कम संभावना लगती है । बीच राजस्थान यात्रा के राहुल किसी तरह का कोई फैसला लेने की जोखिम नही उठाएंगे । राजस्थान यात्रा के बाद गहलोत की कोशिश होगी कि जल्द से जल्द बजट पेश करें ।
जैसा मैं पहले लिखा था कि आलाकमान बहुत ज्यादा उलझन में है । यदि वह पायलट को मनाता है तो गहलोत रूठ जाएंगे और गहलोत को मनाते है पायलट का मुंह फुलाना स्वाभाविक है । इसलिए दोनों के बीच स्थायी सुलह कराना बेहद कठिन है । आलाकमान के जेहन में पंजाब का प्रयोग भी है । इसलिए वह बहुत ही फूंक फूंक कर कदम उठाना चाहता है । तभी तो राहुल और जयराम रमेश ने कहा है कि गहलोत और पायलट दोनो पार्टी के लिए असेट (सम्पति) है ।
राजनीतिक हालातों को देखते हुए लगता नही है कि गहलोत इतनी आसानी से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देंगे ।
आलाकमान के सामने सबसे बड़ी दिक्कत फंड की है । फंड तभी तो मिलेगा जब गहलोत बजट पेश करेंगे । इसलिए राजस्थान में बदलाव बजट के बाद दिखाई प्रतीत होता है । अब सवाल यह उठता है कि क्या इतने पायलट खामोश बैठकर तमाशा देखते रहेंगे ? नही । उनकी उठापटक जारी रहेगी । बजट के बाद हो सकता है कि गहलोत सीएम की कुर्सी छोड़ने पर राजी हो जाए । यह भी हो सकता है कि सीएम की कुर्सी पर बैठने के बजाय पायलट टिकट बांटने का अधिकार हासिल कर ले और आलाकमान इनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान करें ।