आरपार की लड़ाई लड़ने गए पायलट बैरंग लौटे
किसी भी नेता ने नही दी दिल्ली में अहमियत
असन्तुष्ट नेता सचिन पायलट को फिर दिल्ली से बैरंग जयपुर लौटना पड़ा है । अपनी मांग मनवाने के सिलसिले में वे छह दिन से दिल्ली में डेरा डाले हुए थे । दिल्ली प्रवास के दौरान पायलट ने मिलने के लिए हर नेता का दरवाजा खटखटाया । लेकिन किसी भी कांग्रेसी नेता ने उनको अहमीययत नही दी ।
सचिन ने कई बार सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका से टाइम मांगा । मगर उन्हें निराशा ही हाथ लगी । शिमला में छुट्टी मना रही प्रियंका तो दिल्ली भी नही लौटी । जबकि पायलट की ओर से यह प्रचारित करते हुए दावा किया गया था कि उन्हें बातचीत के लिए प्रियंका ने दिल्ली बुलाया है । प्रियंका से मुलाकात की उम्मीद में वे छह दिनों तक दिल्ली में डेरा डाले पड़े थे ।
ज्ञात हुआ है कि पायलट की केवल प्रभारी अजय माकन और एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से बात हुई । लेकिन इस बातचीत का कोई ठोस परिणाम नही निकला । कमलनाथ ने साफ कर दिया कि सीएम अशोक गहलोत से समझौता किये बिना उनकी मांगों पर कुछ नही हो सकता । कमलनाथ जब बीच बचाव करने लगे तो उन्हें बताया गया कि पायलट उसी कम्पनी के डायरेक्टर है जिन्होंने आपकी सरकार को गिराया था । पायलट, जितिन प्रसाद तथा ज्योतिरादित्य सिंधिया तीनो घनिष्ठ मित्र है ।
कमलनाथ की सरकार को गिराने में ज्योतिरादित्य की मुख्य भूमिका रही थी । इसलिए कमलनाथ ने बीच बचाव से अपने हाथ खींच लिए । अहमद पटेल के निधन के बाद आज सोनिया के अशोक गहलोत और कमलनाथ सबसे विश्वस्त है । कमलनाथ की सोनिया के यहां सीधी एंट्री है । इसके अलावा उनकी अशोक गहलोत से भी काफी निकटता है । बताया जाता है कि गहलोत के इशारे पर ही कमलनाथ ने पायलट ने दूरी बना ली ।
प्रभारी अजय माकन ने पायलट के सामने यह प्रस्ताव रखा कि उनको किसी प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया जा सकता है । प्रदेश कौनसा होगा, यह तय नही है । जहां तक मंत्रिमंडल विस्तार का सवाल है, उनके अधिकतम तीन समर्थको को मंत्री बनाया जा सकता है । दो केबिनेट और एक राज्य मंत्री । बातचीत के दौरान पायलट को बताया गया कि मंत्रिमंडल में उनके पहले से तीन मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास, प्रमोद जैन भाया और उदयलाल आंजना है ।
बगावत से पहले भी पायलट सहित तीन मंत्री मंत्रिमंडल में थे । स्वयं सचिन उप मुख्यमंत्री, रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह । इसकी भरपाई के लिए तीन विधायको को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है । शर्त यह है कि तीन में दीपेंद्र सिंह और रमेश मीणा का नाम शामिल नही होगा । बातचीत में यह भी तय हुआ कि पहली बार विधायक बने लोगो को मंत्रिमंडल में जगह नही दी जाएगी । जबकि पायलट पहली बार जीतकर आये वेदप्रकाश सोलंकी और गजराज खटाना को मंत्रिमंडल में जगह दिलाने के पैरवी कर रहे है । सीएम दोनो के नाम पर न तो सहमत है और न ही पहली बार जीतने वालों को मंत्री बनाने के हिमायती है ।
बताया जाता है कि अपनी पैरवी के लिए दिल्ली प्रवास के दौरान पायलट ने अनेक नेताओ से बातचीत की । लेकिन सब कन्नी काट गए । यहां तक कि भँवर जितेंद्र सिंह जिन्होंने पहले पायलट को उप मुख्यमंत्री के लिए राजी किया था, वे भी इस पंचायत से दूर रहे । जितिन प्रसाद द्वारा बीजेपी में शामिल होने के उपलक्ष्य में दी गई पार्टी में स्वयं जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य ने पायलट को बीजेपी में शामिल होने का न्योता दिया । उन्हें बताया गया कि आज बीजेपी निमन्त्रण दे रही है । कल तुम्हे खुद दरवाजा खटखटाना पड़ेगा । कांग्रेस में अब तुम्हारे लिए कोई भविष्य नही बचा है अलावा जिल्लत के । यह बात जोर देकर ज्योतिरादित्य और जितिन प्रसाद ने पायलट से कही ।
दिल्ली से बैरंग लौटने के बाद पायलट समर्थक विधायको में भारी निराशा का माहौल है । समर्थको को पूरी उम्मीद थी कि इस बार पायलट आरपार की लड़ाई लड़कर ही दिल्ली से लौटेंगे । लेकिन हर बार की तरह इस बार भी खाली झोली लेकर लौटे है । दरअसल आलाकमान पायलट को यह एहसास कराना चाहता है कि बगावत का नतीजा क्या होता है । इस बार कांग्रेस नेतृत्व ने पायलट को यह पूरी तरह अहसास करा दिया है कि आज उनकी पार्टी में हैसियत क्या है ।
यह भी ज्ञात हुआ कि एक नेता ने उन्हें बता दिया कि बगावत करके हरियाणा जाना उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी । यदि कोई समस्या अथवा शिकायत थी तो आलाकमान या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बातचीत की जा सकती थी । बारात लेकर हरियाणा जाना इस बात को इंगित करता है कि आपकी नीयत साफ नही थी । नेता ने साफ और तल्ख शब्दो मे कहाकि राजस्थान में अकेले तुम्हारी वजह से सरकार संकटग्रस्त है । सरकार को गिराने के हर प्रयास आपकी ओर से किये गए । यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट जाकर आपने पार्टी की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगाया है ।
समर्थक विधायक भंवरलाल शर्मा और विश्वेन्द्र सिंह द्वारा पाला बदलने से पहले ही डिप्रेसन में थे । दिल्ली से खाली हाथ लौटने के बाद डिप्रेसन का दौरा ज्यादा बढ़ गया है । चर्चा है कि पायलट गुट के करीब पांच छह विधायक गहलोत पाले में जाने के लिए उतावले बैठे है । अर्थात पायलट की लुटिया पूरी तरह डूबने के कगार पर है । अपने समर्थक विधायको के साथ वे बैठक करने की योजना बना रहे है । लेकिन नतीजा कुछ नही निकलने वाला है । हालत यही रहे तो जो कल तक पायलट को समर्थन दे रहे थे, भविष्य में कपड़े फाड़ने से भी नही चूकेंगे । अब उनका सब्र पूरी तरह टूट चुका है । राजनीति में कोई सगा नही होता है, यह सिद्धांत सभी जानते है ।
जहां तक बसपा विधायकों का सवाल है, एक विधायक ने साफ शब्दों में कहाकि जब पायलट एन्ड कम्पनी सरकार को गिराने के लिए बीजेपी के साथ षड्यन्त्र कर रही थी, तब निर्दलीय और हमारे विधायकों ने दृढ़ता के साथ सरकार को गिरने से बचाया था । आज ये मुआवजा मांग रहे है । किस बात का मुआवजा ? सरकार गिराने का या बीजेपी से पैसे लेने का ? पार्टी के प्रति आस्थावान है तो समर्पित होकर कार्य करें । रोज मुआवजे के लिए रोना-धोना क्यों ?
बसपा विधायक का कहना था कि पायलट और उनके समर्थक विधायकों की वजह से जब गहलोत की गाड़ी ब्रेक डाउन होगई थी, तब गाड़ी को धक्का हमने और निर्दलीय विधायकों ने लगाया था । पायलट और उनके समर्थक विधायक तो गुरुग्राम के होटल में होटल गुलछर्रे उड़ाते हुए गहलोत और पार्टी आलाकमान को ब्लैकमेल कर रहे है । अब कह रहे है कि मुआवजे के रूप में मंत्रिमंडल और राजनीतिक नियुक्ति दो । क्या ऐसे गद्दार और बेवफा लोगो को पार्टी से नही निकालना चाहिए ?
पहले पूरी उम्मीद थी कि जून माह में मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा । लेकिन लगता है कि अब दीपावली तक विस्तार टल सकता है । चिकित्सको की सलाह पर मुख्यमंत्री सीएमआर से बाहर नही जा सकते है । फिर बाढ़ और बचाव कार्य । हो सकता है कि इस बीच कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है । इसलिए जिन्होंने मंत्री बनने के लिये नए कपड़े सिलवाए है, उन्हें संदूक में तह लगाकर रख देने चाहिए । हो सकता है कि ये कपड़े अगले साल काम आए ।
यह तो साबित होगया कि गहलोत से पंगा लेना सचिन को बहुत भारी पड़ गया । उनकी और उनके समर्थकों की दुकान फिलहाल पूरी तरह लूट चुकी है । अब केवल प्रभारी अजय माकन ही पायलट की इज्जत को बहाल कर सकते है । वे पूरे प्रयास कर रहे है कि दोनों गुटों के बीच सम्मानजनक समझौता हो जाये । लेकिन यह तभी सम्भव है जब दोनों गुट अपने ईगो को परे हटाकर यथोचित और तर्कसंगत बातचीत करे । छह मंत्री बंनाने की मांग पर न तो आज समझौता हो सकता है और न कल । इसके अलावा पायलट को मानना होगा कि गहलोत उनके नेता है । जब पायलट गुट के बुजुर्ग नेता भंवरलाल शर्मा ही गहलोत को अपना नेता मान चुके है तो पायलट की तो बिसात ही क्या है ?