टोक्यो ओलंपिक में खिलाड़ियों ने अपने जुझारुपन से भारत की उम्मीद जगाई

1960 के रोम ओलंपिक में उड़न सिख मिल्खा सिंह और 1984 में लांस एंजेलिस ओलंपिक में पीटी उषा मामूली अंतर से पदक पाने में चूक गए थे। जीत के बाद नीरज चौपड़ा ने इन दोनों दिग्गज एथलीटों को अपना पदक समर्पित किया।

Update: 2021-08-10 09:26 GMT

नई दिल्ली। 2020 टोक्यो ओलंपिक का समापन हो गया। भारतीय नजरिए से कई मायनों में ऐतिहासिक ओलंपिक में पदक तो केवल 7 आए खिलाड़ियों ने मैदान पर जैसा जज्बा दिखाया, उसमें नई इंडिया की झलक दिखी। सफलता और असफलता खेल का हिस्सा है लेकिन इस बार भारतीय खिलाड़ियों ने जैसा जुझारूपन दिखाया और अपने से काफी ऊंची रैंकिंग वाली टीमों को भी दिखा दिया कि आगे के ओलंपिक खेलों में भारत को हल्का नहीं लिया जा सकता।

आधुनिक ओलंपिक का सफर 1896 में एथेंस से शुरू हुआ था। इस सफर में टोक्यो 2020 सबसे सफल रहा। भारत को 7 पदक नसीब हुए, जो 2012 के लंदन ओलंपिक से एक ज्यादा है। इतने विशाल देश को इतने पदक मिलने पर ही सब खुश हैं। यह खुशी इसलिए भी है कि भारत ने 2016 में रियो ओलंपिक में सिर्फ 2 पदक एक रजत और एक कांस्य ही जीते थे । इस बार के ओलंपिक में कुछ विशेष प्रदर्शन रहा।

सबसे गौरवशाली प्रदर्शन रहा भाला फेंक में नीरज चौपड़ा का। पहले दो प्रयासों को उन्होंने 87 मीटर से आगे फेंक कर अपने से ज्यादा प्रतिष्ठित प्रतिद्वंद्वी पर ऐसा दबाव बनाया कि वह वापसी ही नहीं कर सके। खासतौर से जर्मनी के वेटर, जो फाइनल 8 खिलाड़ियों में भी जगह नहीं बना सके। अंततः 87 पॉइंट 58 मीटर का प्रदर्शन नीरज के लिए गोल्डन बन गया। इसने 125 साल से ओलंपिक एथलीट्स में गोल्ड के लिए तड़पते भारत को नई राह दिखाई। एथलेटिक्स में गोल्ड तो क्या और कोई पदक नहीं मिला।

ओलंपिक इतिहास में दो मौके ऐसे आए जब भारतीय एथलीट कांस्य पदक की जंग में पिछड़ गए थे। 1960 के रोम ओलंपिक में उड़न सिख मिल्खा सिंह और 1984 में लांस एंजेलिस ओलंपिक में पीटी उषा मामूली अंतर से पदक पाने में चूक गए थे। जीत के बाद नीरज चौपड़ा ने इन दोनों दिग्गज एथलीटों को अपना पदक समर्पित किया। ओलंपिक में गोल्ड मिलते देखना इन दोनों का सपना था।

देश में भाला फेंक स्पर्धा कभी भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं रही। थ्रो मुकाबलों में शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में भारतीय एथलीट एशियाई स्तर पर पदक लाते रहे लेकिन इससे ऊपर हमारा स्तर नहीं गया। नीरज 23 साल के हैं और उत्साह भी। उनकी सफलता युवाओं को आकर्षित और प्रेरित करेगी। वैसे नीरज ने साफ कर दिया है कि वे यहीं नहीं रुकने वाले। उनका अगला लक्ष्य 90 मीटर को पार करना है। वे व्यक्तिगत मुकाबलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय हैं। इससे पहले 2008 के बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी में गोल्ड जीता था।

एक और ऐतिहासिक प्रदर्शन भारतीय महिला बैडमिंटन की सबसे सफल खिलाड़ी पीवी सिंधु का रहा । 2016 के रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली सिंधु अपने पदक को इस बार सुनहरा तो नहीं कर पाई पर कांस्य पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली वह एकलौती भारतीय महिला है। वैसे तो पदक पहलवान में सुशील कुमार के भी नाम है। उन्होंने 2008 में बीजिंग में कांस्य और 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीता था।

वैसे टोक्यो में इस बार 2 पदक ही पहलवान ला सके। उम्मीद ज्यादा थी और कम से कम 2 गोल्ड की। बजरंग ने माना है कि वह उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए पर वादा किया है कि 2024 के पेरिस ओलंपिक में गोल्ड लाएंगे। रवि दहिया ने रजत पदक जीता। उन्होंने 2-9 से पिछड़ने के बाद जिस अंदाज में अपने सेमीफाइनल के प्रतिद्वंदी पर फॉल से जीत पाई, वह भी काबिले तारीफ रही। विनेश फोगाट को अपने वजन वर्ग में गोल्ड का प्रबल दावेदार समझा जा रहा था लेकिन वह क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाई।

मीराबाई चानू में वेटलिफ्टिंग में 2016 के रियो ओलंपिक में नाकाम रहकर सभी को निराश कर दिया था लेकिन इस बार उन्होंने पहले ही दिन रजत पदक जीतकर देश को शानदार शुरुआत दी। असम की मुक्केबाज लवलीना ने भी अपने साहसिक प्रदर्शन से सबका दिल जीता। देश को कांस्य पदक दिलाकर उन्होंने शानदार भविष्य की उम्मीद जताई। मैरी कॉम का यह अंतिम ओलंपिक था। वह खूब लड़ी मगर क्वार्टर फाइनल में हार से उनका पदक के साथ विदाई का सपना टूट गया। वह जजों के फैसलों से भी ना खुश नजर आईं।

ओलंपिक में भारत की चमक हॉकी के साथ फैली थी। 8 स्वर्ण पदक जीतकर भारत ने अपनी धाक जमाई। अंतिम बार जब 1980 में स्वर्ण पदक मिला था तब चोटी के राष्ट्रों ने मास्को ओलंपिक का बहिष्कार किया था तब से भारत पदक के लिए छटपटा रहा था। साल के लंबे अरसे के बाद उनकी आज यह इच्छा पूरी हुई। जर्मनी को हराकर उन्होंने कांस्य पदक जीता। सेमीफाइनल में बेल्जियम को भी अच्छी टक्कर दी पर आस्ट्रेलिया से 1-7 से मिली हार चुभती रहेगी।

उम्मीद की जाती है कि सफलता से भारतीय हॉकी फिर से नई ऊंचाइयों को पाने के लिए लड़ती रहेगी। महिला हॉकी टीम ने भी कमाल करते हुए सेमीफाइनल में जगह बनाई । पदक तो नहीं मिल पाया पर उन्होंने ब्रिटेन की टीम को खूब परेशान किया। आस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को हराया। अर्जेंटीना को कड़ी टक्कर दी और स्कोर लाइन 1-2 रही। हर किसी ने भारतीय महिलाओं के जुझारू पन की तारीफ की हार गए तो कोई बात नहीं यह प्रदर्शन नई राह खोलेगा।

गोल्फर अदिति अशोक की बदकिस्मती रही कि 3 राउंड तक दूसरे नंबर पर बनी रहने के बावजूद अंतिम दिन का खराब स्ट्रोक उन्हें पदक से दूर कर गया। मोनिका बत्रा ने टेबल टेनिस में दमदार प्रदर्शन किया। निराश किया तो तीरंदाज और निशानेबाजों ने।

दोनों खेलों में पदकों की उम्मीद थी खासतौर में निशानेबाजी में मनु भाकर और सौरभ चौधरी पिछले कुछ वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। दोनों युवा निशानेबाज दबाव में आ गए प्रदर्शन इतना गड़बड़ हो गया कि फाइनल में जगह नहीं बना सके। चलो इससे इन्हें सीख मिलेगी और 2024 के पेरिस ओलंपिक में यह पदक जीत कर सम्मान बढ़ाएंगे।

(सुरेश कौशिक)

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