हिन्दी प्रचारकों में शामिल थे डाॅ राजेन्द्र प्रसाद : अश्विनी चौबे
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का 103 वाॅ स्थापना दिवस
पटना। हिन्दी-भाषा और साहित्य के उन्नयन में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का महान अवदान हमें गौरव के भाव से भर देता है। संपूर्ण भारतवर्ष में हिन्दी भाषा के प्रचार में इसका योगदान अभूतपूर्व है। बिहार के महान हिन्दी साहित्यकारों के साथ भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद और बाबू गंगा शरण सिंह जैसे देश के महान नेता भी सम्मेलन के हिन्दी प्रचारकों में सम्मिलित थे। यह बातें मंगलवार को सम्मेलन के 103वें स्थापना दिवस समारोह का शुभारंभ करते हुए खाद्य, वन और पर्यावरण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने कही।
उन्होंने कहा कि देश की जिन साहित्यिक विभूतियों और हिन्दी-प्रेमियों ने इसके चतुर्दिक प्रचार और उन्नति के लिए मूल्यवान कार्य किए, उनमें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से जुड़े महान साहित्यकारों का योगदान अत्यंत महनीय है। हिन्दी की इस महान सेवा के लिए हमें भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, आचार्य शिवपूजन सहाय, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, आचार्य रामवृक्ष बेनीपुरी, डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल, बाबू गंगा शरण सिंह, श्री भवानी दयाल सन्यासी, महाकवि रामदयाल पांडेय आदि महापुरुषों का श्रद्धा से स्मरण होता है, जो अलग-अलग समय में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। श्री चौबे ने कुल 25 विदुषियों और विद्वानों को साहित्य-मार्तण्ड, साहित्य-चूड़ामणि और साहित्य-शार्दूल अलंकरणों से सम्मानित किया। समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने विदुषी लेखिका पूनम आनंद के लघुकथा-संग्रह कॉफी टाइम्स का विमोचन किया।
उपमुख्यमंत्री ताराकिशोर प्रसाद ने कहा कि बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, जगन्नाथ प्रसाद, लक्ष्मी नारायण, मथुरा प्रसाद दीक्षित, बाबू वैद्यनाथ प्रसाद सिंह, पंडित दर्शन केसरी पांडे जैसी कई बड़ी विभूतियों ने इस संस्थान के साथ जुड़कर इसे पुष्पित एवं पल्लवित किया। उन्होंने कहा कि हिंदी जन-जन की भाषा है। इसके संवर्द्धन और विकास में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने शुरू से ही काफी अहम भूमिका का निर्वहन किया है। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी भी भाषा को जानना, समझना और बोलना अच्छी बात है, परंतु हमें अंग्रेजियत से बाहर आना होगा और अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति अटूट प्रेम और निष्ठा रखते हुए सभी लोगों को इसके प्रयोग को दैनिक जीवन शैली में उतारना होगा।उन्होंने इस अवसर पर भारतेंदु हरिश्चंद्र की कुछ पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि "अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।" उन्होंने कहा कि सरकार और समाज के सामूहिक प्रयास से ही जन-जन तक हिंदी भाषा की व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने में हम सफल होंगे।
स्वागत समिति के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. सीपी ठाकुर ने माननीय मंत्री से आग्रह किया कि वे साहित्य सम्मेलन के संकल्प को पूरा करने हेतु भारत के प्रधानमंत्री के सामने हमारा वकील बनें। अपने अध्यक्षीय संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने सम्मेलन के 102 वर्षों के गौरवशाली इतिहास का संक्षिप्त विवरण रखा।
बिहार के पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) आलोक राज, विश्वविद्यालय सेवा आयोग बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो. शशिशेखर तिवारी, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एसएनपी सिन्हा तथा मधेपुरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अमरनाथ सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद और साहित्यमंत्री डॉ. भूपेन्द्र कलसी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रधानमंत्री डॉ. शिववंश पाण्डेय ने किया